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________________ २९८ भगवतीस्त्र यन्ति च किम् ? इति प्रश्नाशयः । भगवानाह-'यो इणढे सम?' नायमर्थः समर्थः कुतो नायमर्थः समयः तत्राह-'पुढती' इत्यादि 'पुढवीकाझ्याण' पृथिवीकायिकाः खलु जीवाः 'पत्तेयाहारा' प्रत्येकाहाराः 'पत्तेयपरिणामा' प्रत्येकपरिणामाः 'पत्तयं सरीरं बंधति' प्रत्येकं शरीरं बध्नन्ति 'बंधित्ता' बद्ध्या 'तओपच्छा' ततः पश्चात् तत्तद्रूपेण प्रत्येकाहारग्रहणपरिणमनशरीरवन्धानन्तरम् 'आहारेति वा' आहरन्ति वा विशेषरूपेण 'परिणामेति वा परिणमयन्ति वा अहृतपुद्गलानां परिणामं विशेषरूपेण कुर्वन्ति 'सरीरं वा बंधति' शरीरं वा विशेषरूपेण बध्नन्ति इत्यर्थः ।। द्वितीयं लेश्याद्वारमाह-'तेसिणं भंते ! जीवाणे तेषां पृथिवीकायिकानां खलु जीवानां भदन्त ! 'कइलेस्साओ पन्नत्ताओं' कतिलेश्याः प्रज्ञताः परिणमाते हैं क्या? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'णो इण? सम?' हे गौतम ! ऐसा यह अर्थ समर्थ नहीं है क्योंकि 'पुढवीकाइयाणं पत्तेया. हारा पत्तेपपरिणमा, पत्तेयं सरीरं बंधंति' पृथिवीकायिक जो जीव हैं वे प्रत्येक आहारवाले होते हैं और प्रत्येक ही उस गृहीत आहारके पुद्गलों को परिणामानेवाले होते हैं। इस कारण वे प्रत्येक अपने शरीर का बन्ध करते हैं एक ही शरीर का सब मिलकर बन्ध नहीं करते हैं। 'बंधित्ता' अपने २ शरीर का भिन्न २ रूप से बन्ध करके फिर 'तओ. पच्छा' वे प्रत्येक ही आहार के ग्रहण उसके जूदे २ परिणमन और शरीर के बन्ध के बाद में विशेषरूप से आहार करते हैं और आहृत. पुद्गलों को विशेषरूप से परिणमाते हैं और विशेषरूप से फिर वे शरीर का बन्ध करते हैं ॥१॥ __ अब द्वितीय लेश्याद्वार का कथन किया जाता है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-तेसिणं भंते ! जीवाणं कहलेस्साओ पनत्ताओ' Sत्तरमा प्रभु ४ छ है-'णो इणठे समठे' हे गौतम! 2 अय परामर नथी. भ पुढवीकाइयाणे पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयं सरीरं बंधति' જે પૃથ્વીકાયિક જીવે છે, તે પ્રત્યેક આહારવાળા હોય છે, અને પ્રત્યેક તે ગ્રહણ કરેલ આહારના પુદ્ગલેને પરિણુમાવવાવાળા હોય છે. તે કારણથી તે પ્રત્યેક પોતાના શરીરને બંધ કરે છે બધા મળીને એક જ શરીરને બંધ श्ता नथी. 'बधित्ता' पाताना शरीर l gal ३२ ५५ री तओ gઝ' તે પછી તેઓ આહારનું ગ્રહણ અને તેના જુદા જુદા પરિણમન અને શરીરના બંધ પછી વિશેષ રૂપથી આહાર કરે છે અને આહાર કરેલા પુલને વિશેષ રૂપથી પરિણમાવે છે અને પછી તે વિશેષ રૂપથી શરીરને બંધ કરે છે ?
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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