SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ સ્ટેટ્ भगवती गर्भोदेशकः 'सोचैव निरवसेसो भाणियन्त्रो' स एव निरवशेषः- समग्रोऽपि भणितव्यः - वक्तव्यः 'एव' इति एवम् अनेन प्रकारेण यथा प्रज्ञापनायां गर्भोदेश के गर्भसूत्रोपलक्षितो देश के सप्तदशपदस्य षष्ठे उद्देश के सूत्रं तथैव इहापि वाच्यम् तन्न्यूनाधिकत्वपरिहारार्थमाह- 'सोचेव' स एव गमदेशको निरवशेषो भणितव्य इति अनेन यत् सूचितं तदिदम् कति खलु भदन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्ताः 'गोयमा ! छ लेस्साओ पन्नत्ताओ तं जहा कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा' गौतम ! पड्लेश्याः प्रज्ञताः तद्यथा कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या अत्र यावत्पदेन नीलकापोततेजः पतिलेाचतुष्टयस्य संग्रहो भवति तथा च कृष्णनीलका पोत तेजःपद्मशुक्लादि भेदेन षड्लेश्याः प्रज्ञप्ताः 'मणुस्साणं भंते ! कइलेस्साओ पन्नताओ गोयमा ! है कि हे गौतम! यहाँ प्रज्ञापना सूत्र के १७ वें पदका छट्टा गर्भ उद्देश 'पूरा कर लेना चाहिये । इस प्रकार से जैला प्रज्ञापना सूत्र के गर्भोदेशक मैं- गर्भसूत्रोपलक्षित उद्देशक में १७ वें पद के छट्टे उद्देशे में सूत्र है 'उसी प्रकार से यहां पर भी वह समग्ररूप से कह लेना चाहिये 'निरवसेसी' पद से यह प्रकट किया गया है कि वह उद्देश पूरा का पूरा यहां कहना चाहिये कमती बढती नहीं इस प्रकार के कथन से जो निष्कर्ष निकला वह इस प्रकार से है - गौतम ने प्रभु से जब ऐसा पूछा हे भदन्त । asure कितनी कही गई हैं ? तो इसके उत्तर में प्रभु ने कहा हे गौतम! लेश्याएं छह कही गई हैं। कृष्णलेश्या यावत् शुकुलेश्या यावत्पद से यहां नील, कापोत, तेज और पद्म इन चार लेश्याओं का ग्रहण हुआ है । फिर गौतम ने प्रभु से पूछा - 'मणुस्साणं भंते ० !' हे भदन्त ! मनुष्यों को सोचे०' हे गौतम! या विषयभां प्रज्ञायना सूत्रना १७ अत्तरमा पहना पूरेपूरा છઠ્ઠા ગોદ્દેશનુ કથન સમજવુ' અર્થાત્ જે રીતે પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના ગોંદ્દેશમાં –ગ સૂત્રથી ઉપલક્ષિત ઉદ્દેશાના ૧૭ સત્તરમાં પદના છટ્ઠા ઉદ્દેશામાં સૂત્ર છે. તે જ રીતે અહિયાં પણ તે સમ્પૂર્ણ રૂપે સમજી લેવું 'निरवसेस्रो' थे यहथी मे मनाव्यु छे ! - यूरेपुरा उद्देशानु उथन ४२. તેથી વધુ કે ઓછું કરવું નહીં. ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને જયારે એવુ' પૂછ્યું કે હે ભગવન્લેશ્યાએ કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુએ કહ્યુ` કે-હે ગૌતમ ! છ પ્રકારની વૈશ્યાએ કહેવામાં આવી છે તે આ પ્રમાણે છે. કૃષ્ણે લેશ્યા૧, નીલલેશ્યા ૨, કાપેાતવૈશ્યા, તેજોલેશ્યા૪, પદ્મવેશ્યાપ અને શુકલલેશ્યા૬, ક્રીથી गीतभस्वाभीमे प्रभुने मे' पूछयु छे है- 'मणुस्खाणं भते ! हे भगवन् मनुष्याने
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy