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________________ प्रमेयवन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सू०५ वस्तुतत्वनिरूपणम् महावीरं वंदइ नमसइ" ततः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति 'जहा खंदओ' यथा स्कन्दकः चन्दननमस्कारादिकं सर्वमपि स्कन्दकवदेव करोति अत्र द्वितीयशतकमथमोद्देशकमरूपितं स्कन्दकप्रकरणमनुस्मरणीयम् कियत्पर्यन्तं स्कन्दकपकरणम् इह अध्येतव्यम् ? तत्राह-'जाव से इत्यादि । 'जाव से जहेयं तुज्झे वदह' यावत् तत् यथेदं यूयं वदथ एतत्पर्यन्त स्कन्दकपकरणं ज्ञातव्यम् । 'जहा गं देवाणुप्पियाणं अंतिए वहवे राईसर०' यथा खल्लु देवानु पियाणामन्तिके बहवो राजेश्वरतलचरमाडम्पिककौटुम्बिकेभ्यश्रेष्ठिसेनापतिसार्थवाहमभृतयः मुण्डा भूत्वा अगारादनगारितां प्रबनिता, किन्तु नाहं तथा कर्तुं शक्नोमि किन्तु अहं तु देवानुप्रियाणामन्तिके पश्चानुव्रतादियुक्तं द्वाद वंदह नमंसह 'श्रमण भगवान महावीर के वन्दना की नमस्कार किया 'जहाखंदओ' जैसा बन्दन नमस्कार आदि स्कन्दक ने किया था वैसा ही इसने किया स्कन्दक का प्रकरण द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक में प्ररूपित किया गया है सो वह सब प्रकरण 'जाब से जहेयं तुज्झे बदह' इस मूत्र तक का कथन यहाँ ग्रहण कर कह लेना चाहिये तात्पर्य इस प्रकरण का ऐसा है कि हे भदन्त ! जैसा आप कहते हैं, बात तो वैसी ही है, परन्तु 'जहाणं देवानुपियाणं अंतिए बहवे राईसर.' जिस प्रकार से आप देवानुप्रिय के पास अनेक राजेश्वर तलवर माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, अष्ठी, सेनापति और सार्थवाह आदि सुण्ठित होकर अगारावस्था से अनगारावस्था को धारण कर चुके हैं वैसी अवस्था में धारण करने के लिये समर्थ नहीं हूं मैं तो आप देवानुप्रिय के पास पंच अणुतेथे श्रद्धा युद्ध। धन 'समणं भगव महावीरं वंदइ नमसइ' श्रम मगवान भलावीर स्वामी न ४२, नमः॥२ ४ा-'जहा खंदओ' की રીતે વંદના નમસ્કાર કર્યા હતા તે જ પ્રમાણે આ સમિલે પણ વદન નમસ્કાર કર્યા. સ્કંદકનું પ્રકરણ બીજા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં પ્રરૂપિત કરેલ છે. તે તમામ પ્રકરણ અહિયાં સમજી લેવું. આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે-હે मापन भा५२ प्रमाणे । छ।, ते प्रभारी छे. पर' जहा णं देवाणु प्पियाणं अंतिए बहवे राइसर०' ले प्रमाणे मा५ ।नुप्रियनी पासे भने રાજેશ્વર તલવર, માડમ્બિક, કૌટુમ્બિક, ઈભ્ય, શ્રેણી, સેનાપતિ અને સાર્થવાહ વિગેરે મુંડિત થઈને અગાર અવસ્થાથી અનગાર અવસ્થાને સ્વીકારી ચૂક્યા છે. તેવી જ અવસ્થા હું સ્વીકારવા સમર્થ નથી. હું તે આપ દેવાનુપ્રિય
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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