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________________ प्रचन्द्रिका टीका २०१८ उ०१० सू० ४ द्रव्यधर्मविशेषादिनिरूपणम् २३९ यात्रा हे भदन्त ! किं स्वरूपा तव यात्रा ? भगवानाह - 'सोमिला ' हे सोमिल 1 'जं मे तवनियम संजमसझायझाणावस्तयमाइएसु जोपसु जयणा से तं जत्ता' यन्मे तपो नियमसंयमस्वाध्यायध्यानावश्यकादिषु योगेषु यतना सा एपा यात्रा तत्र तपोऽनशनादि द्वादशविधम्, नियमास्तद्विषया अभिग्रहविशेषाः यथा एतावत्तपः स्वाध्यायवैयावृत्त्यादि मया अवश्यं कर्तव्यमित्यादिरूपाः । संयमः- पृथिवीकायादि सप्तदशविधः, स्वाध्यायः धर्मकथादिः, ध्यानं - धर्मध्यानादिः आवश्यक पविधम्, यद्यपि एतेषु तपः प्रभृतिषु भगवतस्तदानीं विशेषतो न कश्चिदरि संभवति तथापि तपः प्रभृतीनाम् तत्फलसद्भावात् तपः प्रभृतिकमस्तीहै ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'सोमिला ! जं मे तवनियम संजमसज्झायझाणावरलयमाह एसु जो एसु जयणा से तं जन्ता' हे सोमिल! तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान और आवश्यक आदि योगो में जो यतना है अनशन आदि के भेद से तप १२ प्रकार का है तप की वृद्धि करनेवाले या तपमें सहारा पहुंचानेवाले जो अभिग्रह विशेष हैं वे नियम हैं जैसे इतना तप, स्वाध्याय वैद्यावृत्य आदि मुझे इतने समय तक अवश्य करना चाहिये । पृथिवीकायादिकों की रक्षा करने रूप संयम १७ प्रकार है धर्मकथा आदि करना स्वाध्याय है धर्मध्यान आदि ध्यान हैं समंता बन्दना आदि के भेद से आवश्यक ६ प्रकार का है यद्यपि भगवान् के तप आदिकों में उस समय कुछ भी विशेषरूप से संभवित नहीं होता है फिर भी तप आदिकों में विशेषफल का सद्भाव होने से तप आदि तेना उत्तरभां अलु हे छे -- 'सोमिला ज मे तवनियमसंजमसज्ज्ञाय झाणावस् यमाइए जोए जयणा से त्त जत्ता' हे सोभिस तप नियम संयम स्वाध्याय ધ્યાન અને આવશ્યક વિગેરે ચેાગેામાં જે યતના છે, તેજ યાત્રા છે. અનશન વિગેરેના ભેદથી તપ ૧૨ ખાર પ્રકારનું છે. તપ વધારવાવાળું અથવા તપમાં સહાયતા પહેાંચાડનાર જે અભિગ્રહ વિશેષ છે, તે નિયમ છે. જેમ કે આટલું તપ, સ્વાધ્યાય કે વૈયાવૃત્ય વિગેરે મારે અમુક સમય સુધીમાં કરી જ લેવું જોઈએ. પૃથ્વીકાય વિગેરે જીવાની રક્ષા કરવા રૂપ સયમ ૧૭ સત્તર પ્રકારના छे. धर्म अथा वि. ४२ ते स्वाध्याय छे. धर्मध्यान विगेरे ध्यान छे. समता, વન્દના વિગેરેના ભેઢથી આવશ્યક છે ૬ પ્રકારનું છે જો કે ભગવાનના તપ વિગેરેમાં તે સમયે કાંઈ પણુ વિશેષ રૂપથી સંભવિત થતું નથી તેાપણુ તપ - વિગેરેમાં વિશેષ ફળને સદ્ભાવ હાવાથી તપ વિગેરે છે, તેમ સમજવુ...
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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