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________________ भगवनीसूत्र कर्तव्यम् 'तत्य णं वाणियगामे नयरे' तत्र खलु वाणिज्यग्राये नगरे 'सोमिले नामं माहणे परिवसई' सोमिलो नाम ब्राह्मणः परिवसति 'अड़े जाव अपरिभृए' आढथो यावद् अपरिभूतः अत्र यावत् पदेन दीप्जादिविशेषणाना संग्रहो भाति भगदतीसूत्रस्थ द्वितीयशतकाश्चमोद्देशतितुंगिकानगरीधश्रावकवत् 'रिउ. व्वेद० जाव सुपरिनिहिए' ऋग्वेद यायत् परिनिष्ठितः स्कन्दकवत् अत्र यावत्पदेन यजुर्वेदादि वेदशिक्षाकल गायनेकविधाङ्गादीनां संग्रहो भवति अत्र स्कन्दकपकरणं सर्वमेव अनुस्मरणीयम् । 'पंचण्ह खंडियसयाणं' पञ्चानां खण्डिकशनानाम् खण्डिका शिष्यः 'सयस कुडुवस्स य' स्त्रकस्य कुटुम्बस्य च 'आहेवच्चं जाव विहरह' आधिपत्य यावत्पदेन 'पोरेसच्चं आणाईमरसेगावच्वं कारेमाणे' पौरतिक सूत्र में वर्णित हुए पूर्णभद्र चैत्य उद्यान के होता है ऐसा लमाना चाहिये । 'तत्थ णं वाणिकगामे०' इस चाणिज्यग्राम नगरमें 'सोमिले. नाम०' सोमिल नाम का ब्राह्मण रहता था । 'अढे जाव अपरिभूए' यह आढ्य यावत् अपरिभूत था यहां यावत्पद से दीप्त आदि विशेषणों का ग्रहण हुआ है । भगवती सूत्रके द्वितीय शतकके पंचम उद्देशक में वर्णित हुए तुगिका नगरी में रहनेवाले श्रावक के जैसा यह था तथा स्कन्दक के जैसा 'रिउम्मेष० जाव सुपरिनिहिए' यह ऋग्वेद आदि चारों वेदों का ज्ञाता था वेदशिक्षाकल्प आदि अनेक प्रकार के अङ्गों का जाननेवाला था । इसके वर्णन में स्कन्दक का प्रकरण सय ही यहां लगा लेना चाहिये। 'पंचण्ह खडियसयाणं' इसके ५०० शिष्य थे खण्डिक शब्द का अर्थ शिष्य है । 'सयस्स कुडंपस्स य आहेवच्चं जाव विहरई' अतः वसा पूल उद्यान प्रभार ४ सभा "तत्थ ण वाणियगामे० मा पाणिन्य ग्राम नाम "सोमिले नाम०" मिस नामना ब्राह्मएर खेता तो "अड्ढे जाव अपरिभूए" ते माढय-मेटो है सपत्तिपाणी तो यावत् અપરિભૂત-બીજાથી પરાજય ન પામે તે હતે. અહિયાં યાવત્ પદથી દીસ વિગેરે પદોને સંગ્રહ થયે છે. ભગવતી સૂત્રના બીજા શતાના પાંચમા ઉદેશામાં વર્ણવેલા તુંગિકા નગરીમાં રહેવાવાળા શ્રાવક જે તે સેમિલ माझ ता. तभनी म ते "रिउव्वेय जाव सुपरिनिदिए" वह યજુવેદ સામવેદ અથર્વવેદ ચારે વેદને જાણકાર હતા. તેમજ શિક્ષા, કલ્પ તિષ વ્યાકરણ નિરૂક્ત છંદ વિગેરે અનેક પ્રકારના અંગોને જાણવાવાળે हता, तेनु न २४४ना वन प्रमाणे सघणु समा. "पंचण्हं खंडियप्रयाण" तर पांयसे। ५००) शिष्य ता ''31 शहना अर्थ शिष्य से प्रभारी छ. "सूयस्स कुडु बस्त्र य आहेवच्चं जाव विहरइते सोभित
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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