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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सू०१ भव्यद्व्यदेवरूपानगारनिरूपणम् २१३ ज्ञेयम् अन्यथा अग्रिमोत्तरवाक्यस्यासामंजस्यमापवेदिति । 'सेणं तस्थ छिज्जेज वा भिज्जेज्ज वा स भावितात्माऽनगारः खलु तत्रासिधारादौ छिघेत वा भिधेत वा असिधारयोपवेशनादि कर्तुस्तस्याऽनगारस्य शरीरे छेदनं भेदनं भवति नवेति प्रश्नः, भगवानाह-'णो इणटे समझे नायमर्थः समर्थः असिधारया तदंगस्य छेदनादिकं न भवतीतिमावा, कथं तदङ्गस्यासिधारया छेदनादिकं न भवति अत्र लोकानुभवविरोधो भवेदिति चेत्तत्राह-णो खलु' इत्यादि । 'णो खल तत्थ सत्य कमइ' नो खलु तत्र शस्त्रं कामति भावितात्मनोऽनगारस्य शरीरावयवे शस्त्रस्य क्रमणं न भवति वैक्रियलब्धिसामर्थ्यवलेन शस्त्रस्य तत्र कुण्ठितत्वात् पाषाणप्रवेश या बैठना कहा गया है वह वैक्रियलब्धि के प्रभाव के वश से ऐसा कर सकता है, यह प्रकट करने के लिये कहा गया है ऐसा जानना चाहिये नहीं तो अग्रिम उत्तरषाक्य में असमञ्जसता आजावेगी अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'से ण तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज वा' हे भदन्त ! असिधारा के ऊपर उपवेशनादि क्रिया करने. वाले उस अनगार के शरीर में छेदन भेदन होता है, या नहीं होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'णो इणढे समडे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् असिधारा आदि के ऊपर उपवेशनादि क्रिया करनेवाले उस अनगार के शरीर में उस असिधारा आदि द्वारा जरासा भी छेदन नहीं होता है । इसका कारण क्या है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं। 'णो खलु तत्थ सस्थं कमई' उस भावितात्मा अनगार के शरीरावयव के ऊपर शस्त्र का क्रमण नहीं होता है। क्योंकि वैक्रिया તેમ કરી શકે છે. તે બતાવવા તેમ કહેવામાં આવ્યું છે. તેમ સમજવું. નહિ તે પહેલા કહેલ ઉત્તર વાકયમાં અસમંજસપણું–અઘટિતપણુ આવી જશે. व गौतम स्वामी से पूछे छे 2-"से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेजज वा" है मगनन् मसि-तसवारनी घा२ ५२ मेसना२ मनाना શરીરમાં છેદન ભેદન થાય છે? કે નથી થતું? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ छ8--"णो इणठे समढे" गौतम ! म अथ परामर नथी अर्थात् તલવારની ધાર વિગેરે ઉપર બેસવા વિ૦ ની ક્રિયા કરવાવાળા તે અનગારના શરીરમાં તે તલવારની ધાર વિગેરેથી જરા પણ છેદન ભેદન થતું નથી. તેમ ન થવાનું શું કારણ છે? તે પ્રમાણે ગૌતમ સ્વામીના પૂછવાથી તેના उत्तरमा प्रभु ४९ छ -“णो खलु तत्थ सत्थं कम" मावितामा मान
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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