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________________ भगवतीसूत्रे २०६ न्द्रियतिर्यग्योनिको मनुष्यो वा मृत्वा नरकगतियोग्यो वर्तते तमाश्रित्योत्कृष्टतः पूर्वकोटिप्रमाणात्मिका कथितेति भावः । भव्यद्रव्यनारकस्य स्थिति कथयित्वा भव्यद्रव्यासुरकुमारस्य स्थितिज्ञानाय प्रश्नयन्नाह - 'भवियदव्व' इत्यादि । भवियदव्त्र असुरकुमारस्त णं भंते' भव्यद्रव्यासुरकुमारस्य खलु भदन्त ! 'केवइयं काल 'ठिती पन्नत्ता' कियत्कालं स्थितिः प्रज्ञप्तेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् ' उक्को सेर्ण विनि पलियोवमाई' उत्कृष्टतः त्रीणि पल्योपमानि मनुष्यं पञ्चन्द्रियतिर्यञ्चं चाश्रित्य जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्त स्थितिरुक्ता, उत्कृष्टत उत्तरकुर्वादियुग लिकमनुष्यान् आश्रित्य परयोपमत्रायात्मिका स्थितिः प्रज्ञप्ता । ' एवं जाव थणियकुमारस्स' एवं यावत् स्त नारक की स्थिति का कथन करके अब सूत्रकार भव्यद्रव्य असुरकुमार की स्थिति को प्रकट करने के प्रश्नोत्तर के रूप में कहते हैं- 'भवियदव्च असुरकुमारस्त णं भंते । केवहयं कालं ठिई पण्णत्ता' हे भदन्त जो जीव भव्यद्रव्य असुरकुमार है, उसकी कितने काल की स्थिति होती है ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं- 'गोयमा । जहन्नेणं अंतोमुहत्त' उक्कोसेगं तिनि पलिओमाई' हे गौतम! जो जीव भव्यद्रव्य असुरकुमार है उसकी स्थिति जघन्यरूप से एक अन्तमुहूर्त की है और उत्कृष्ट से तीन पत्योपम की है जघन्यस्थितिवाले संज्ञोपञ्चेन्द्रिय तिर्थश्च को एवं मनुष्य को लेकर कही गई है। क्योंकि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्यों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की सिद्धान्त में कही गई है । तथा उत्कृष्ट स्थिति उत्तर कुरु आदि के युगलिक मनुष्यों को लेकर कही गई है । 'एवं जाव थणियकुमारस्स' जिस આ રીતે ભવ્યદ્રવ્યનારકની સ્થિતિનું કથન કરીને હવે સૂત્રકાર ભવ્ય द्रव्य असुरकुमारनी स्थिति मताववा प्रश्नोत्तर ३ये छे. “भवियदव्व असुरकुमाराणं भते ! केत्रइय कालं ठिई पण्णत्ता" डे लगवन् ने लव लव्यद्रव्य અસુરકુમાર છે. તેની સ્થિતિ કેટલા કાળની હાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु डे छे - "गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओ माई ” હે ગૌતમ જે જીત્ર ભવ્ય દ્રવ્ય અસુરકુમાર છે, તેની સ્થિતિ જઘન્ય રૂપથી એક અંતર્મુહૂત'ની છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પત્યેામની છે. જઘન્ય સ્થિતિવાળા સ'ની પ'ચેન્દ્રિય તિયાઁચ અને મનુષ્યને ઉદ્દેશીને કહી છે. ક્રમ કે--પંચેન્દ્રિય તિય"ચ અને મનુષ્યની જઘન્ય સ્થિતિ સિદ્ધાંતમાં અન્તહૂત'ની કહી છે. તથા ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ઉત્તર કુરુ વિગેરેના યુગલિક મનુ प्यने उद्देशाने उडी . "एवं जाव थणियकुमारस्स्र०" ने रीते भव्य द्रव्य
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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