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________________ refer टीका श०१८ उ०७ सु० ४ देववक्तव्यता इंजीवस्पृष्टानि वा तेषां देवानां विकुर्वितनानाशरीराणि किम एकजीवसम्बद्धानि जीवसम्बद्धानि वेति मनः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे ॐतम | 'एगजीवफुडाओ जो अणेगजीवफुडाओ' एकजीवस्पृष्टानि नो अनेकश्रीवस्पृष्टानि देवानां त्रिकुर्वितनानाशरीराणि न विभिन्नजीवसंबद्धानि भवन्ति किन्तु एकजीवसंबद्धान्येव एकएव देवजीवः सर्वेषां शरीराणां निर्माता, तस्यैत्र निर्मातु र्देवस्य विकुर्वितनानाशरीरैः सह संबन्धादित्युत्तरम् । पुनः प्रश्नयति गौतमः ' ते णं भंते !' इत्यादि । 'ते णं भंते!' ते खलु भदन्त | 'तेसिंणं बोंदीणं' तेषां विकुर्वितशरीराणां खलु 'अंतरा' अन्तराणि 'किं एग जीवफुडाओ अणेगजीवडाओ' किम् एकजीवस्पृष्टानि अनेकजीवस्पृष्टानि वा ? हे भदन्त । तेषां देवसंवन्धिविकुर्वित शरीराणामन्तराणि किमेकजीवसंवद्धानि अनेकजीवसंबद्धानि वेति प्रश्नः, भगवानाह - गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम! ' एगजीवफुडा णो अणेगजीवफुडा' एकजीवस्पृष्टा नो अनेकजीवस्पृष्टा, विकुर्वितशरीराणारूप सब एक जीव से सम्बद्ध हैं या अनेक जीवों से सम्बद्ध है ? उत्तर मैं प्रभु कहते हैं - 'गोमा०' हे गौतम ! वे देव द्वारा विकुर्वित हुए सब रूप एक ही जीव द्वारा संबद्धित है भिन्नर जीवों से संबंद्धित नहीं है तात्पर्य ऐसा है कि एक ही देव जीव उन सब विकुर्वित रूपों का करनेवाला है अतः उस देव का ही विकुचित उन नाना शरीरों के साथ सम्बन्ध है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ते णं भंते !०' हे भदन्त ! विकुर्वितशरीरों के जो अन्तर हैं वे क्या एक जीव से सम्बद्धित हैं या अनेक जीवों से सम्बद्धित है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा०' हे गौतम! वे देवद्वारा विकुर्वित हुए शरीरों के अन्तर अनेक १३५ રૂપે એક જીવથી બંધાયેલ છે? કે અનેક જીવાથી મધાયેલા છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरभां अलु ! छे -- " गोयमा !" हे गौतम! ते देवद्वारा विभुर्वित थयेला બધા જ રૂપે! એક જ જીવતા સબંધવાળા છે. જુદા જુદા જીવાના સમધવાળા નથી. કહેવાનુ તાત્પર્ય એ છે કે—એક જ દેવ સમ`ધી જીવ તે બધા વિકનિંત રૂપાને બનાવનાર છે. તેથી વિકૃવિત થયેલા તે અનેક શરીર સાથે ते देवने। सगंध छे. डवे गौतम स्वाभी अलुने मे पूछे छे ! - "ते णं भंते!" हे भगवन् વિકુવા થયેલ શરીરાનું જે અંતર છે, તે શુ એક જીવના સંબંધવાળુ' છે કે અનેક જીવેના સંબંધવાળુ' છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે— " गोयमा !” देवद्वारा विदुर्वित थयेव शरीरातुं भतर भने हावा छतां पशु
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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