SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ० ७ सू० २ उपध्यादिस्वरूपनिरूपणम् ९७ भंडमत्तोवगरणपरिग्गहे' फर्मपरिग्रहः शरीरपरिग्रहः वाह्यभाण्डामात्रोपकरणपरिग्रहश्च । मूर्छया परिगृह्यमाणं भाण्डोपकरणं परिग्रहः । 'नेरझ्याणं भंते !' नैरयिकाणां खलु भदन्त । कतिविधः परिग्रहः प्रज्ञप्तः, भगवानाह-एवं जहा' इत्यादि। ‘एवं जहा उबहिणा दो दंडगा भणिया' एवं यथोपधिना द्वौ दण्डको भणिती 'तहा परिग्गहेण वि दो दंडगा भाणियव्या' तथा परिग्रहेणापि द्वौ दण्डको भणि. तव्यौ एकेन्द्रिय-नारकयोरेको दण्डकः, द्वीन्द्रियादारभ्य वैमानिकान्तानामेको दण्डक इति मिलित्या द्वौ दण्डको । अयं भावः-एकेन्द्रियनारकयोः द्वौ परिग्रहौं कर्मशरीररूपो. शेषाणां तु कर्मगरीस्वहिर्भाण्डादिरूपाश्रयपरिग्रहश्च । 'कइविहे गं भंते ! परिहाणे पन्नत्ते' कतिविधः खलु भदन ! मणिधानं प्रज्ञप्त, प्रणिहितिः, फर्म परिग्रह, शरीर परिग्रह और बाह्य भांडमात्रोपकरणरूप परिग्रह है। सूच्छी से परिगृहथमाण जो भाण्डोपकरण है वे परिग्रह में आते हैं । 'नेरइयाणं भंते !' हे भदन्त ! इन परिग्रहो में से नैरयिकों के कितने परिग्रह होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं । 'एवं जहा उवहि०' कि हे गौतम! जिस प्रकार से उपधि को लेकर दो दण्डक कहे जा चुके हैं। उसी प्रकार से परिग्रह को लेकर भी दो दण्डक कह लेना चाहिये । इनमें एकेन्द्रिय और नारक इनका एक दण्डक और बीन्द्रिय से लेकर वैमानिकान्त तक के जीवों का दूसरा दण्डक है । भाव इसका ऐसा है कि एकेन्द्रिय और नारक इनमें दो परिग्रह होते हैं। एक कर्मरूप और दूसरा शरीररूप । इनके अतिरिक्त जो और जीव हैं, उनके कर्म, शरीर और बहिर्भाण्डादिरूप परिग्रह होता है। कम्मपरिग्ग" भपश्थि, शरीर५रियल, माममात्रा५४२५३५ ત્રણ પરિગ્રહ છે. મૂછીથી પરિગ્રમાણ જે ભાંડેપકરણ છે, તેને પરિગ્રહમાં भावामा मावे छ "नेरइयाणं भंते !" 8 सन मात्र परियडी पैत्री નારકીય જીને કેટલા પરિગ્રહ હોય છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે"एवं जहा उवहि०" गौतम! पधिना विषयमा प्रमाणे में हैं। કહેવામાં આવ્યા છે, એ જ રીતે પરિગ્રહને લઈને પણ બે દડકે કહેવા. તેમાં એકેન્દ્રિય અને નારકને એક દંડક અને દ્વીન્દ્રિયથી લઈને વૈમાનિક સુધીને જીને બીજે દંડક છે. કહેવાને ભાવ એ છે કે-એકેન્દ્રિય અને નારકમાં કર્મરૂપ, અને શરીર રૂપ એમ બે પરિગ્રહ થાય છે તેથી બીજા જે જીવે છે, તેને કર્મ, શરીર અને બહિર્ભાડાદિ રૂપ ત્રણ પરિગ્રહ હેાય છે. भ० १३
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy