SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 700
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८२ भगवतीसूत्रे तमेय दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'त जहा तद्यथा-'दव्वबंधे य भावबंधे य' द्रव्य पन्धश्च भाववन्धश्च । 'दप्रबंधे णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते' द्रव्यबन्धः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'मागंदियपुता ! दुविहे पनत्ते' माकन्दिकपुत्र ! द्विविधो द्रव्यबन्धः प्रज्ञप्तः, द्रव्यवन्धो नाम द्रव्येण स्नेहरज्ज्वादिना अथवा द्रव्यस्य परपरेण वन्धो द्रव्यबन्ध इति स च द्रव्यबन्यो द्विविधः, तमेव दर्शयति-तं जहा' तद्यथा-'पओगयंधे य वीससाबंधे य' प्रयोगवन्धश्च विसावन्धश्च । 'वीससाबंधे भंते ! काविहे पन्नत्ते' विनसावन्धः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्ता, विस्रसास्वभावस्तया विक्षसया जायमानो बन्धो विस्त्रप्साबन्धः स्वाभाविक इत्यर्थः यथा स प्रकार से है-'व्वयंचे य भावबंधे थ' एक द्रव्य बन्ध और दूसरा भाव बंध, अब माकन्दिकपुत्र अनगार प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'दन्च. थंधे थे भंते ! कविहे पणत्ते' हे भदन्त ! द्रव्यबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में भगवान कहते हैं-'मागंदियपुत्ता! दुविहे पन्नन्ते' हे मान्दिक पुत्र द्रव्य बन्ध दो प्रकार का कहा है-स्नेहरज्जु आदि के द्वारा जो बन्ध होता है, वह द्रव्यबन्ध है । अथवा द्रव्य का परस्पर में जोबन्ध होता है वह द्रव्यबन्ध है। द्रव्यवन्धके दो प्रकार ऐसे हैं -'पओगधे य बीस साबंधेष' एक प्रयोगबन्ध और दूसरा विनसाबन्ध रज्वादिक प्रयोग से जो बन्ध होता है यह प्रयोगबन्ध है। और रचाभा. विक जो पन्ध होता है यह विसप्तायन्ध है। जैसे मेघमाला का बन्ध । अब मान्दिकपुत्र प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'वीलसा०' हे भदन्त ! विस्रसा. घन्ध कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'मागदिय पुत्ता !' हे 'दव्वब धे य भावबंधे य” से द्रव्यमय मन मान्न साम'ध शथी भा. पुत्र प्रभु पछे छ है 'दबंधे थे भंते ! कइविहे पण्णत्ते' मन् द्रव्य मध eat रन छ ? तना उत्तरमा प्रमु छ है-'माकंदियपुत्चा! दुविहे पण्णत्ते' मात्र 5०५५ मे प्रारना डर छे. स्नेह પાશ વગેરેથી જે બંધ થાય છે તે દ્રવ્યબબ્ધ છે અથવા દ્રવ્યોને અચેન્યમાં જે બંધ થાય છે તે દ્રવ્ય બંધ છે. દ્રવ્યબંધના બે પ્રકાર આ પ્રમાણે छ. 'पओगवंधे य वीससाबंधे य' से प्रयोग म-५ मन मान्न विवसामध ૨જુ વિગેરેના પ્રયોગથી જે બંધ થાય છે તે પ્રયોગબંધ છે. અને જે બંધ સ્વાભાવિક રીતે થાય તે વિસ્મસબંધ છે. જેમકે મેઘસમૂહોને સ્વાભાવિક બંધ. ७३ मादीपुत्र भनगार इशथी ने पूछे छ है-वीससाबंधे गं भदंत कइविहे पण्णत्ते १' मान विसाध सा ॥छ ? तना
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy