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________________ ६७२ भगवतीस्त्रे मारणान्तिकं कर्म निर्जरयत:-भरणसमीपत्ति कर्म क्षपयत इत्यर्थः 'मारणतियं मार मरमाणस्स' मारणान्तिकं मारं म्रियमाणस्य मारणान्तिकायुर्दलिकापेक्षं मारं नियमाणस्य मरणं कुर्वत इत्यर्थः 'मारणंतियं सरीरं विप्पजहमाणस्स' मारणान्तिकं-मरणममीपवत्तिशरीरपुद्गलापेक्ष शरीरं विपजहतः-मुञ्चत:-अन्तिम शरीरं त्यजत इत्यर्थः शरीरस्य पुनरग्रहणात् 'जे चरिमा निजरा पोग्गला' ये घरमा:-अन्तिमा निर्जराः पुद्गला: निजीयमाणाः पुद्गला इत्यर्थः 'ते' ते खलु 'पोग्गला' पुद्गलाः 'मुहमा' सूक्ष्माः 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ताः 'समणाउसो' श्रमणा युग्मन् ! हे श्रमण आयुष्मन् । हे भगवन् ! 'सन्न लोगपि य णं ते ओगाहित्ता गं का वेदन कर रहा है, मरणसमीपवर्ती कर्म का क्षय कर रहा है, मार. णान्तिकायुदलिकों की अपेक्षा से जो मरण कर रहा है, मरणसमीपवर्ती शरीर पुद्गल की अपेक्षा से जो शरीर का त्याग कर रहा है-अर्थात् अन्तिम शरीर का जो त्याग कर रहा है। ऐसे उस भावितात्मा अन. गार के जो 'चरिमा निजरा पोग्गला' अन्तिम-निर्जीयमाण पुद्गल है । 'ते णं खलु पोग्गला' वे पुद्गल 'सुहमा' सूक्ष्म 'पण्णत्ता' कहे गये हैं। हे श्रमण ! आयुष्मन् ! 'सव्वं लोगं पियण' ओगाहिता णं चिट्ठति' वे सूक्ष्म पुद्गल क्या समस्त लोक को भी अवगाहित करके ठहरे हुए हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता मार्गदियपुत्ता०' हा माकन्दिकपुत्र! पूर्वोक्त विशेषण सम्पन्न उस भावितात्मा अनगार के वे सूक्ष्म पुदल यावत् सम्पूर्ण लोक को अवगाहित करके उसमें ठहरे हुए हैं। ત્યાગ કરી રહ્યા છે, અર્થાત્ અંતિમ શરીરને જે ત્યાગ કરી રહ્યા છે. એવા તે ભાવિ तामा मनमाना रे 'चरिमा निज्जरा पोग्गला' मन्तिम निभाय पुगता छ. 'तेणं खलु पोग्गला' a पुदगला 'सुहुमा' सूक्ष्म 'पण्णत्ता' हा छ. ३ श्रम मायुनन् “सव्व लोग पि य ण ओगाहित्ता णं चिटुंति" ते वा सूक्ष्म पुगता समस्ताने माहित ४शन २॥ छ ? तना उत्तरमा प्रभु छ है 'हता मागंदियपुत्त । माध्यिपुत्र पूजित विशेषतावितामा अनसारना જે સૂમ પુદ્ગલ ચાવતું સંપૂર્ણ લેકને અવગાહિત કરીને તેમાં રહેલ છે.
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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