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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०२ १०१ कात्तिकनेप्टिनः दीक्षादिनिरूपणम् ६३९ गाइ जाव परिजणेहि जेहपुत्तेहि य समणुगम्ममाणमग्गा' मित्रज्ञातिस्वजनसम्बन्धिपरिजनैः ज्येष्ठपुत्रैश्च समनुगम्यमानमार्गाः पृष्ठपरिचलत्परिजनाः सन्त इत्यर्थः 'सविडीए जाव रवेणं' सर्वर्या याबद्रवेण अत्र यावत्पदेन-'सबउजुईए, सम्बवलेणं, सव्वसमुदएणं, सबादरेणं, सबविभूइए, सबविभूसाए सम्बसंभमेणं, सन्त्र-पुप्फगंध-मल्लालंकारेणं, सव्वतुडियसहसणिणाएणं, महया इड्डीए, महया जुईए, महया वलेणं, महया समुदएणं, महया वरतुडियजमगसमगणवाइएणं संख-पणा-पडह-भेरी-झल्लरी खरमुही-हुडुक्क-मुरयमुइंग दुहिणिग्धोसणाइय' इत्यस्य संग्रहो भवति । एषां पदानां व्याख्या औषपातिकमूत्रे मत्कृतायां पीयूषवर्षिणीटीकायां विलोकनीया। अनेकमकारक (गलखी) पर चढे 'दुरूहित्ता चढकर 'मित्तणाइ जाव परिजणेहिः' उनके पीछे २ उस समय उनके मित्र, ज्ञाति, स्वजन, सम्बन्धी, और परिजन चल रहे थे। और उनके ज्येष्ठ पुत्र भी चले जा रहे थे। 'सव्विड्डीए जाव रवेणं' ये सब वणिग्जन अपनी २ पूर्ण ऋद्धि के साथ घर से निकले, इनके आगे २ बाजा की तुमुल ध्वनि होती थी। यहां यावत्पद से 'सचज्जुईए, सव्वबलेणं, सव्वसमुदएणं, सव्वादरेणं, सम्वविभूईए, सव्वविभूसाए, सव्यसंभमेणं, सवपुष्फगंधमल्लालंकारेणं सन्चतुडिय सदसणिणाएणं, महया इड्डीए, महया जुईए, महया चलेणं, महया समुदएणं, महया वरतुडिय-जमग समगप्पवाहएण, संख-पणव -पटहभेरी-झल्लरी-खरमुही, हुडुक्क, मुरय-सुइंग-दुदुहिणिग्योस. णाइय' इस पाठ का संग्रह हुआ है । इन पदों की व्याख्या औपपातिक सूत्र पर 'जो मेरी पीयूषवर्षिणी टीका है उसमें देखलेना "मित्तणाइ जाव परिजणेहि" मानी पाछ पा साना भित्रामात જને, સ્વજને, સંબંધીજને અને પરિજનો તેમજ જ્યેષ્ઠ પુત્રો ચાલતા હતા. "सबढीए जाव रवेणं" a मा नो पातपातानी पूर्ण ऋद्धि ની સાથે ઘેરથી નીકળયા. તેઓની આગળ આગળ વાજાઓને તુમુલ અવાજ थत डा. मडिया यात्५४थी 'सव्वज्जुइए, सव्ववलेणं सव्वसमुदएणं, सव्वादरेणं, सव्वविभूईए, सव्वविभूसाए, सव्वसंभमेण, सयपुप्फगंधमल्लालंकारेणं, सव्वतुडियसहसनिणाएणं, महया इड्डीए, महया जुईए, महया बलेण महया समुदएणं, महया वरतुडिय-जमगसमगप्पवाइएणं-संख-पणव-पटह-भेरी-झल्लरी-खरमुही, हुडुक, मुरय, मुगदुदुहिणिग्घोषणाइय' मा पाइने सब थये। छ. मा तमाम પની વ્યાખ્યા પપાતિક સૂત્રપર મેં પીયૂષવર્ષિણી ટીકા બનાવી छे तमा न देतात्पय मेछ
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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