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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०२ सू०१ कार्तिकश्रेष्टिनश्चरमत्वनिरूपणम् ६१५ भवति 'जहा तइयसए ईसाणस्स तहेव कूडागारदिलुतो' यथा तृतीयशतके ईशानस्य तथैव कूटारदृष्टान्तः, 'तहेव पुन्वभवपुच्छा' तथैव पूर्वभवच्छा , यथा तृतीयशतके ईशानविषये नाटयदर्शने कूटाकारदृष्टान्तो वर्णित स्तथैव इहापि कूटाकारशालादृष्टान्तो वक्तव्या, यथैव गौतम ईशानस्य पूर्वभवाविषयकं प्रश्नं कृतवान् तथैव इहापि प्रश्नो ज्ञातव्या कियत्पर्यन्तं तृतीयशतकीयमकरणमिह वक्तव्यं तत्राह 'जाव' इत्यादि 'जाव अभिसमन्नागया' यावदमिसमन्वागतापूर्व भवार्जितपुण्योदयात् प्राप्ता अत्र यावत्पदेन सा दिव्या देवद्धिः दिव्या देवघुतिः प्राप्ता इत्यादीनां संग्रहा, भगवानाह-'गोयमा इ' गौतम इति हे गौतम ! इत्येवं रूपेण संवोध्य 'समणे भगवं महावीरे' श्रमणो भगवान् महावीरः 'भगवं गोयमं एवं वयासी' भगवन्तं गौतमम् एवमवादीत्, "एवं खलु गोयमा !' एवं का ग्रहण किया गया है। 'जहा तझ्यसए ईसागस्त तहेच कूडागारदिट्ठनो' जैप्सा तृतीयशतक में ईशान के विषय में नाट्यदर्शन में कूटाकारशाला का दृष्टान्त वर्णित हुआ है, उसी प्रकार से वह दृष्टान्त यहां पर भी करना चाहिये । 'तहेव पुत्वभवपुच्छा' तथा जैसा ईशान के पूर्वभव का प्रश्न वहां गौतम ने किया है, उसी प्रकार से वही प्रश्न यहां पर भी कहना चाहिये। यह तृतीय शतकीय प्रकरण यहां 'जाव अभिसमन्नागया' यावत् पूर्वभव में अर्जिन पुण्य के उदय से प्राप्ति हुई है-इस पाठ तक का ग्रहण करना चाहिये। यहां यावत्पद से 'सा दिव्या देविडि, दिवा, देव ज्जुई, लद्धा पत्ता' इत्यादि पदों का ग्रहण किया गया है । 'गोयमाई' हे गौतम ! इसरूपसे संबोधित करके 'समणे भगवं महावीरे भगवं यह थया छ. "जहा तइयसए ईसाणस्स तहेव कूडागारदिÉतो" alon શતકમાં ઈશાનેન્દ્રના વિષયમાં નાટ્યવિધિના દર્શન પ્રકરણમાં કુટાકાર શાળાનું દૃષ્ટાંત બતાવેલ છે. તે જ પ્રમાણે તે દષ્ટાંત અહિયાં પણ સમજવું. તેમ જ ત્યાં ગૌતમ સ્વામીએ ઈશાનેન્દ્રના પૂર્વભવ સંબંધી પ્રશ્ન કરેલ છે, તેજ પ્રમાણે તેવી જ રીતને પ્રશ્ન અહિ પણ શક્રને ઉદ્દેશીને કરી લે. આ सधणी त्रीत शतना विषय मिडिया "जाव अभिसमन्नागया" यावत् पू. ભોપાજીત પુણ્યના ઉદયથી પ્રાપ્ત થયેલ છે. –આ પાઠ સુધી ગ્રહણ ४२वी. मलिया य ५४थी "सा दिव्वा देविढि दिव्वा देवज्जुई, लद्धा पत्ता" विगैरे पो प्रड राय छे. 'गोयमा!' 8 गौतम ! मा प्रभारी समाधान अरीने “समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी" श्रमाय मगवान्
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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