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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१ सू०२ संयतासंयतत्वे ज्ञानद्वारम् कादे र्याभिनिवोधिकादि- ज्ञानमस्ति तस्यैव जीवनारकादेस्तदामिनिवोधिकादिज्ञानं वाच्यं नान्येषामिति । 'केवलनाणी जहा नो सन्नि नो असन्नी' केवल ज्ञानी यथा नो संज्ञि नो असंज्ञी, केवलज्ञानी अचरमतया वक्तव्य इत्यर्थः । 'अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा आहारओ' अज्ञानी यावद्विभङ्गज्ञानी यथा आहारकः, अज्ञानी यावद्विभङ्गज्ञानी आहारकवदेव स्याच्चरमः स्यादचरमः, अत्र यावत्पदेन मत्यज्ञानि श्रुवाज्ञानिनोः संग्रहो भवति यो हि अज्ञानं न पुनः मास्यति स चरमः, यस्त्वभव्य जीवो ज्ञानं न प्राप्स्यति सो ऽचरम इति |१| ६०५ W योगद्वारे - 'सजोगी जाव कायजोगी जहा आहारओ' सयोगी यावत्काय योगी यथा आहारकः, अत्र यावत्पदेन मनोयोगि वचोयोगिनोः संग्रहो भवति, जिस नारकादिक जीव को जो आभिनिबोधिक आदि ज्ञान होता है, उसी जीव को वह आभिणिबोधिक आदि ज्ञान कहना चाहिये अन्य को नहीं । 'केवल नाणी जहा नो सन्नि जो असन्नी' केवलज्ञानी नो संज्ञी नो असंज्ञी के जैसा अवरम है । 'अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा आहारओ' अज्ञानी यावत् विभज्ञानी आहारक के जैसा हैं । अर्थात् कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम हैं। यहां यावत्पद् से मत्यज्ञानी श्रुताज्ञानी इन दो का ग्रहण है । जो अज्ञान को पुनः प्राप्त नहीं करेगा वह चरम है और जो अभव्य जीव ज्ञान को नहीं मान करेगा वह अचरम है। योगद्वार में - 'सजोगी जाव कायजोगी जाव आहारओ सयोगी यावत् काययोगी आहारक के जैसा कदाचित् चरम होता है और कदाचित् अचरम होता है ! यहां यावत्पद से અસ્થિ' જે નારક વિગેરે જીવને વ્યાભિનિર્માધિક જ્ઞાન થાય છે, તે જ જીવને ते मामिनिमोधिज्ञान कुडेवु' मन्यने नहीं', 'केवलणाणी जहा नो सन्नी नो असन्ती' ठेवणज्ञानी ने संज्ञी ने ना असंज्ञी प्रमाये अथरभ छे. 'अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा आहारओ' अज्ञानी यावत् दिल'गज्ञानी भाडार પ્રમાણે સમજવા, અર્થાત્ તે કદાચિત્ ચરમ અને કદાચિત્ અચમ છે. અહિ' યાવપદથી મત્યજ્ઞાની, શ્રુતાજ્ઞાની આ બે ગ્રહણ થયા છે. જે ક્રીથી અજ્ઞાનને પ્રાપ્ત ન કરે તે ચરમ છે જે અભન્યજીવ જ્ઞાનને ફરીથી પ્રાપ્ત નહી કરે તે અચરમ છે. योगद्वारमां - 'सयोगी जाव कायजोगी जाव आहारओ' सयोगी यावत् કાયયેાગી આહારક પ્રમાણે કાઇવાર ચરમ હોય છે. અને કદાચિત્ અરસ
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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