SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० भगवती भणितव्यम् , यथौदारिकशरीरविषये च प्रोक्तं तथैव श्रोत्रेन्द्रियविषयेऽपि विशे यम् । 'नवरं' नवरं भेदस्त्वयम्-'जस्म अस्थि खोइंदियं' यस्यास्ति श्रोत्रेन्द्रिया तस्य वाच्यमिति । 'एवं चक्खिदियघाणिदियनिभिदियफासिदियाण वि एवं चक्षुरिन्द्रियघ्राणेन्द्रियनिहन्द्रियस्पर्शनेन्द्रियाणामपि, एवमेव श्रीनेन्द्रियवदेः चक्षुरिन्द्रियादिविषयेपि विचारः कर्तव्या, 'नवरं जाणियध्वं जस्स जं अत्यि नवरं ज्ञातव्यं यस्य यत् अस्ति भेदरतु एतावानेव यत यस्य जीवविशेषस्य या इन्द्रियं भवति तस्य जीवस्य तद्दण्ड के तादृशेन्द्रियविषयको विचार कर्तव्य इत्ये ज्ञातव्यमिति । गौतमः पृच्छति-'जीवे गंभो' जीवः खलु भदन्त मणजी निबत्तेमाणे कि अहिगरणी अहिगरण' मनायोगं निर्वतमानः किम् अधिकरणी हे गौतम! जैसा कथन औदारिकशमीर के विषय में किया गया है ऐसा ही कथन श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में भी कर लेना चाहिये । परन्तु जो इस कथन में विशेषता है वह इस प्रकार से है-'नवरं जस्स अस्थि सोई दियं कि यह इन्द्रिय जिस जीव के होती है उस जीव की इस इन्द्रिय को लेकर उसके विषय में कथन करना चाहिये । 'एवं चक्खि दिय घाणिदियजिभिदिय, फासिंदियाण वि' इसी प्रकार चक्षुइन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय जिह्वाइन्द्रिय और स्पर्शन इन्द्रिय इन इन्द्रियवाले जीवों के -सन्पन्ध में भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये । 'नवरं जाणियव्वं जस्स जं अस्थि' अर्थात् ये इन्द्रियां जिन २ जीवों को होती है वे जीव अधिः करणी भी होते हैं और अधिकरणरूप भी होते है। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जीवे ण भंते ! मणजोगं निव्वमाणे, कि अहिगरणी अहिगरणं 'हे भदन्त ! मनोयोग की निर्वर्तना કર્યું છે એવું જ કથન શોન્દ્રિયવાળાના વિષયમાં પણ સમજી લેવું परत मा थनमा २ विषेशता छ ते शत छ. “जस्स अस्थि सोई दिय" मा श्रीन्द्रिय रे न डाय छे ते नी त धन्द्रिय ४२ तना विषयमा थन. ४२ ले " एवं चक्विंदिय पाणिदिय जिभिदिय, फाखिदियाण वि" मे Na यान्द्रिय, प्राधन्द्रिय, न्द्रिय मन १५शनन्द्रियावान समयमा ५ मे १ थन सभा '. "नवरं जाणियव्वं जस्त्र नं अत्थि " अर्थात ५२ ४ी छन्द्रयावानहाय છે. તે જીવ અધિકરણ પણ હોય છે, અને અધિકરણ રૂપ પણ હોય છે. हवे गौतम स्वामी प्रभुने को पूछे छे ,-"जीवे णं भवे ! मणजोन निव्वत्तेमाणे किं अधिगरणी अहिगरणं" सगवन् ! मनायोनी नियतना
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy