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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ० १ सू०१ प्रथमाप्रथमत्वे योगद्वारम् अथ दशमं योगद्वारमाह - "सजोगी" इत्यादि "सजोगी सणजोगी वयजोगी कायजोगी एगत्तपुहुत्रेण जहा आहारए" सयोगी मनोयोगी वचोयोगी काययोगी एकत्वपृथक्त्वेन यथा आहारकः, आहारनवदिहापि बोद्धव्यम् नो प्रथमः किन्तु अप्रथम एव, अनादौ संसारे अनन्त-शो योगानां प्राप्तत्वात् " नवरं जस्स जो जोगो अत्थि" नवरं यस्य यो योगोऽस्ति, यस्य नारकादे जीवस्य यो योगो विद्यते तस्यैव जीवस्य स योगो वक्तव्यो नान्यमत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, और विभङ्गज्ञानी एकवचन और बहुवचन में आहारक के जैसा अप्रथम ही होते हैं, प्रथम नहीं, क्योंकि अनादि संसार में अनेक बार सभेद अज्ञान का लाभ इस जीव को हो चुका है। नव ज्ञानद्वार समाप्त इस १० वें योगद्वार में प्रभु कहते हैं कि- 'सजोगी, मणजोगी, वय जोगी, कायजोगी एमसहन्ते णं जहा आहारए' सघोगी, मनोयोगी, aarait और फाययोगी, सब एकवचन को लेकर आहारक सूत्र के जैला प्रथम नहीं हैं किन्तु अप्रथम ही हैं। क्योंकि अनादिसंसार में अनन्तवार योगों की प्राप्ति हो चुकी है । 'नवर' जस्स जो जोगो अस्थि' जिस नारकादि जीव को जो योग है उसको वही योग कहना चाहिये । अन्य को नहीं, इसी योग की अपेक्षा लेकर उसमें प्रथमता और ५७७ અજ્ઞાની શ્રુત અજ્ઞાની અને વિભ'ગજ્ઞાની એકવચન અને બહુવચનથી આહા. રક પ્રમાણે અપ્રથમ છે, પ્રથમ નથી. કેમકે અનાદિસ'સારમાં અનેકવાર ભેદવાળા અજ્ઞાનની પ્રાપ્તિ આ જીવને થઇ છે. ।। નવમું જ્ઞાનદ્વાર સમાપ્ત हसभु योगद्वार- या हशमां द्वारभां अलु डे - 'सजोगी, मणजोगी, वयजोगी कायसयोगी, मनोयोगी, वथनयोगी, अने મહુવચનથી આહારક સૂત્રમાં કહ્યા અપ્રથમ જ છે. કેમકે અનાદિ સસાथर्ध युडी छे. 'नवर' जस्स जो जोगो છે તેને તેજ યાગ કહેવા. બીજાને जोगी, एगतपुहुत्ते णं जहा आहारए' કાચચેાગી, બધા એકવચન અને પ્રમાણે પ્રથમ હાતા નથી પરતુ તે रभां तेमाने अनन्तवार योगोनी प्रप्ति સ્થિ' જે નારકાદિજીવને જે ચેાગ થાય भ० ७३
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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