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________________ भगवती सूत्रे ૪૮૦ चंदिमरिय० जहा ठागपत्रे' ऊर्ध्वं चन्द्रपूर्य० यथा स्थानपदे स्थानपदं प्रज्ञापनासूत्रस्य द्वितीयं पदम् तत्र स्थानपदे यथा कथित तथैव इहापि ज्ञातव्यम् कियत्पर्यन्त १ तत्राह - 'जाव मज्झे इत्थ ईसाण डिसए' यावत् मध्येऽत्र ईशानावतंसकः पञ्चमोऽवतंसकः ५ । प्रज्ञापनायाः द्वितीये स्थानपदे चेदम्- 'उ चंदिमसूरियगहगणनवख च तारारूवाणं बहूई जोयणसयाई बहू जोयणसहस्साई बहू जोयणसपसहस्सा बहुगाओ जोयणकोडीओ, बहुगाओ जोयणकोडांकोडीओ उर्दू उपसा एत्थ णं ईमाणे णामं कप्पे पनचे पाईपडीणायए, उदीर्णदाहिणविस्थिन्ने अद्धचंद ठाणसंठ, अचिमालिभासरासिवण्णामे असंखेज्जाओ जोषणकोडियो असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविवश्वभेणं असंखे माओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, सव्वायणामए अच्छे जाव पडिवे, ऊपर- चन्द्रमा सूर्य को उल्लङ्घन कर आगे जाने पर चावत् प्रज्ञापना सूत्र के द्वितीय स्थान पद में जैसा कहा गया है उसी के अनुसार (जाच मज्झे ईसानवडे सए महाविमाणे) मध्यभाग में यावत् ईशानावतंसक-पांचत्रां अवतंसएक विमान आता है । प्रज्ञापना के द्वितीय स्थान पद में यह पाठ इस प्रकार से है - 'उड्डु चंदिम सूरियमहगणन क्खत्ततारा: रुवाणं बहू जोयगमयाह बहू जोवण सहस्लाई बहूई जोपणसयसहस्वाईं बनाओ जण कोडीओ बहगाओ जोयणकोड़ा कोड़ीओ. उडू उपत्ता पण ईसाणे णामे कप्पे पन्नसे, पाईपडीपार, उदीर्ण दाणि बिस्थिन् अद्ध' चंदसंगणसंठिए, अच्चिमालिमासरासिवण्णामे, असंखेज्जाओ जोयणकोड़ीओ असंखेजाओ, जोगणको डाकोडीओ आयाम विक्खंभेणं, असंखेज्जाओ जोयणको डाकोडीओ परिक्खेवेणं, सव्वरयणामए, अच्छे जाव पडिवे, तत्थ ईसाणगदेवाणं अट्ठावीसं · 'उन' 'चं देमसूरिय० जहा ठाणपदे० ' पर चंद्रमा भने सूर्य ने सधीने भागण જાય ત્યારે યાવત્ પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના બીજા સ્થાનપદમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યુ’ છે, તેજ પ્રમાણે મધ્યભાગમાં યાવત્ ઈશાનાવત...સક પાંચપુ' આવત'સ-વિમાન - આવે છે. પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના બીજા સ્થાન પત્રમાં આ પાઠ આ રીતે છે. ૐ चंदिमसूरियगहगण नक्खत्तारारूवाण बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साइं बहूई जोयणसय सय सहस्साई बहुगाओ जोयणकोडीओ बहुगाओ जोयणत्रोडाकोड़ीओ उड्डु उपत्ता पत्थणं ईसाणे णामे कप्पे पण्णत्ते पाईणपढिणायए, उद्दीण दाहिणबित्थिन्ने अर्द्धचंदठाणसंठिए, अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे, असंखेज्जाओ, जोयustrateओ आयाम विक्खंभेणं, असखेज्जाओ जोयणकोडाकोड़ीओ परिक्खेवेण,
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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