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________________ प्रमैययन्द्रिका टीका श०१७ उ०२ सू० ४ जीवस्य रूप्यरूपित्वनिरूपणम् ४६९ बन्धहेत्व मावेन कर्मा मात्रात् कर्माभावे च कर्म ननितशीरादेरमावादेव वर्गादीनामभाव इति नारूपी भूत्वा रूपी भवतीतिभावः । ‘से तेगडेणं जाव चिहित्तए वा' तत्तेनार्थेन यावत् स्थातुं वा अा यावत्पदेन 'गोपमा एवं बुबह से जीवे' इत्यारम 'विउवित्ताण' इत्यन्तस्य ग्रहगम् तथा च देवादि जीवः कर्मसद्भावात् रूपी सन् अरूपी भूत्वा स्थातुं न समर्थः। तथा अरूपी सन् कर्मरहितत्वात् रूपी भूत्वा स्थातुं न समर्थः, इति भूत्रद्वपस्याशयः । 'सेव भंते ! सेव भंते ! ति तदेव भदन्त ! तदेवं भान ! इति । हे भदन्त ! यद् देवानुपियेण कवितम् तत् हो चुका हैं, 'अवेयस्त' वेद रहित हो चुका है, 'अमोहस्स' मोह रहित अभाव है। अतः कर्म के अभाव में कर्म जनित जो शरीरादिक हैं उनका उसमें सत्य नहीं होने से वर्णादिकों का अभाव है। इसलिये वह अरूपी होकर रूपी नहीं होता है । 'से तेणटेणं जाव चिहिसए वा' यहां यावत्पद से 'गोयमा! एवं बुच्चा से जीये' इस पाठ से लेकर विउ. वित्ता गं' यहाँ तक का पाठ गृहीन हुआ है । तथा च देवादि जीव कर्म के सद्भाव से रूपी होता हुआ अरूपी रूप से होकर नहीं रह सकता है। तथा अरूपी होता हुआ जीव कर्म रहित हो जाने के कारण रूपी रूप से होकर नहीं रह सकता है । यह सूत्र बघ का आशय है । 'सेवं भंते ! २४ यूश्या छे. "अमोहस्स" मा २डित थ यूश्या छ. मन "ताओ सरीराओं કારણ ત્યાં કર્મ બંધના કારણરૂપ રાગાદિને અભાવ છે. જેથી કર્મના અભાવમાં કર્મથી થયેલ જે શરીર વિગેરે છે. તેનું જીવમાં સત્વ નહિ હોવાથી વર્ણાદિકને અભાવ છે. તેથી જીવ અરૂપી થઈને રૂપી थ त नथी. "से तेणट्रेणं जाव चिद्वितए वा" माडियां यावत् पहथा "गोयमा एवं वुचह से जीवे" मे ४थी "विवित्ता " माह સુધીના પાઠને સંગ્રહ થયે છે. દેવ વિગેરેને જીવ કર્મના સદૂભાવથી રૂપી થઈને અરૂપી પણાથી રહી શકતે નથી તેમજ અરૂપી બનેલે જીવ કમ રહિત થઈ જવાના કારણે રૂપી બનીને રહી શકતું નથી આ પ્રમાણે न्या सूत्रानो भाशय छ. "सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति" लगवन् !
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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