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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ०२ सु० ३ शरीरजीवयोभिन्नत्वनिरूपणम् ४०१ भवति, एतासां चतसृणामपि वुद्धीनां लक्ष गोदाहरणान नन्दीमत्रे मत्कृतायाँ ज्ञानचन्द्रिकाटीकायां पविंशति (२६) तममूने विलोकनीयानि, आमुचतमृध्वपि बुद्धिषु वर्तमानस्य औत्पत्तिक्यादिबुद्धिमत इत्यर्थः देहिनः, अन्यो जीवोऽन्यो जीवात्मा, शरीरं भिन्नं तन्निश्च जीव इत्यर्थः । अथ मतिज्ञानाविषये परमत. माह-'उग्गहे' इत्यादि । 'उग्गहे ईहाए अवाए धारणाए य वट्टमाणस्स जाव जीवाया' अवग्रहे इहायाम् अपाये धारणायां च वर्तमानस्य याश्त् जीवात्मा अवग्रहादीनां स्वरूपमुदाहरणसहितं नन्दीसूत्रेऽस्मत्कृतायां ज्ञानचन्द्रिकाटीकायां सप्तविंशतितम (२७) सूत्रादारभ्य पत्रिंशत्तम (३६) सूत्रपर्यन्तं द्रष्टव्यम् । अवमहादयो ज्ञानविशेषरूपा एव, यावश्पदेन 'अन्ने जीवे अन्ने' इत्यस्य संग्रहा, 'यिकी, कर्मजा और पारिणामिकी इन चार प्रकार की धुद्धियों में वर्त 'मान देही का शरीर जीवात्मा से भिन्न है और जीवात्मा शरीर से -भिन्न है इन औत्पत्तिशी आदि चार बुद्धियों के लक्षण एवं उदाहरण नन्दीसूत्र की ज्ञानचन्द्रिका टीका में २६ वे सूत्र में लिखे गये हैं। वहां से ही जान लेना चाहिये । इसी प्रकार से मतिज्ञान आदिकों के विषय में परमत ऐसा है कि 'उगहे ईहाए, अवाए, धारणाए य चट्टमाणस्ल जाव जीवा या' मतिज्ञान के भेदरूप अवग्रह में, इहा में, अवाय में और धारणा में वर्तमान देही जीव शरीर जीवात्मा से भिन्न है और जीवात्मा उससे भिन्न है । यह, थावत्पद से 'अन्ने जीवे अन्ने' इन पदों का संग्रह हुआ है। इन अवग्रहादिकों का स्वरूप उदाहरण सहित मैंने नन्दी सूत्र की ज्ञानचन्द्रिको नामकी टीका के २७ वें सूत्र से लेकर ३६ वें सूत्र तक विस्तार के साथ लिखा है। अतः वहीं से जान અર્થ આ પ્રમાણે છે. ઔપરિકી વૈનાયિકી કર્મજા અને પરિણામિકી આ ચાર પ્રકારની બુદ્ધિમાં રહેલ દેહિનું શરીર જીવાત્માથી ભિન્ન (જ) છે. અને જીવાત્મા શરીરથી ભિન્ન છે આ ઔત્પત્તિકી વિગેરે ચારે બુદ્ધિઓના લક્ષણ અને ઉદાહરણ નંદીસૂત્રના ૨૯ માં સૂત્રની જ્ઞાનચન્દ્રિકા ટીકામાં આપવામાં આવેલ છે. જીજ્ઞાસુએ ત્યાંથી તે સમજી લેવી આજ પ્રકારથી મતિજ્ઞાન વિગેરેના विषयमा परभत या प्रमाणे छे. "उग्गहे ईहाए अवाए धारणाए य वट्टमाणरस जाव जीवाया" भतिज्ञानना ३५ मा डाभां, मवायमा मन ધારણામાં વર્તમાન દેહી-છવ, શરીર, જીવાત્માથી ભિન્ન છે અને જીવાત્મા तनाथी मिन्न छ. गिडियां यावत् ५४थी अन्ने जीवे अन्ने" से पहोर्नु अह થયું છે. આ અવગ્રહ વિગેરેના સ્વરૂપ ઉદાહરણ સહિત મેં નંદી સૂત્રનાં સત્યાવીસમાં સૂત્રથી બત્રીસમાં સૂત્રની જ્ઞાન ચંદ્રિકા ટીકામાં વિસ્તાર સહિત भ० ५१
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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