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________________ ३५४ भगवतीस्त्रे क्रियाभिः स्पृष्टः १ । 'जेर्सि पि य णं जीवाणं सरीरेर्हितो मूळे निव्वत्तिए' येपामपि च खलु जीवानां शरीरेभ्यो मूलं निर्वत्तितम् 'ते त्रिणं जीवा काइयाए जब पंचहि किरिया पुट्ठा' तेऽपि खलु जीवाः कायिक्यादि यावत् पश्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टाः यत् एतेषां विराधना निमित्तभावस्य बहुतरत्वात् २ | 'अहे मंजे !' अथ खलु भदन्त ! 'से मूले अप्पणी गरुयत्ताए' तन्मूलमात्मनो गुरुकतया 'जाव जीविया ववशेवेई' यावत् जीवितात् व्यपरोपयति, अत्र यावत्पदेन समारित्वगुरु सम्भारिकत्वयोः ग्रहणं भवति तथा मूलं प्रत्यचपतत् ये तत्र माणभूत जीवसत्वास्तान विराधयति, इत्यारभ्य 'स्थानात्स्थानं संक्रामयति' इति पर्यन्तपदानां ग्रहणं भवति । ततञ्च तन्मूलं प्रचालनानन्तरं स्वसारेण प्रचलत् प्रपतद् वाsन्यान् तद्देशस्थितान् जीवान् जीविताद् व्यपरोपयति विनाशयति इत्यर्थः 'तणं भंते 1 से पुरिसे' ततः खलु भदन्त ! स पुरुषः यस्य व्यापारेण 'ऐसा क्यों होता है इसका उत्तर पीछे लिखा जा चुका है । इसी प्रकार से 'जेसिं पियणं जीवाणं सरीरेहितो मूले निव्वत्तिए जाव बीए निव्वत्तिए' जिन जीवों के शरीर से वह बना है 'ते वि णं जीवा काइ याए जाव पंचहि किरियाहि पुट्ठा' वे भी जीव कायिक आदि पाँच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। क्योंकि ये भी विराधना में निमित्त होते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते है- 'अहे णं भंते ! से मूले अप्पणी गरुयत्ताए जाव जीवियाओ वबरोवेह, हे भदन्त | वह सूल अपने स्वतः के भार से नीचे जमीन पर गिर पडता है और जिस जगह वह गिरा है वहां के प्राण भूत, जीव, सत्त्व नकी वह विराधना कर देता है यावत् उन्हे एक स्थान से दूसरे स्थान में पटक देना है तो इस स्थिति में 'तओ णं भंते 1 से पुरिसे कह किरिए' हे भदन्त ! वह पुरुष कितनी ક્રિયાઓથી કઈ રીતે પૃષ્ટ થાય છે. તે બાબત ફળ ના પડવા વિગેરે રૂપે चडेसा वर्णन यु' छे. ते प्रमाणे सम सेवु. ये रीते "जेखि पियणं सरिरेहिता मूळे निवत्तिए” ? कवोना शरीरथी भूज मन्या होय “ते विणं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरिया हि पुट्ठा” ते भवे। पशु असिडी विगेरे यांचे ક્રિયાવાળા થાય છે કેમ કે તે જીવા પણ પ્રાણાતિપાતમાં નિમિત્તરૂપ હોય છે. डुबे गौतम स्वाभी अलुने खेवु छे छे हैं “अहे णं भंते ! से मूले अपणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेइ" हे भगवन् ते भूज पोताना ભારથી નીચે જમીન પર ખરી પડે અને જે જગ્યાના ઉપર પડે ત્યાંના પ્રાણ ભૂત, જીવ અને સત્વની વિરાધના કરે છે. યાવત્ એક સ્થાનથી બીજે સ્થાને पछाड़े छे. तो ते स्थितिभां "तओ णं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए" हे
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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