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________________ भगवतीस्त्रे मयेन संदंशकेन 'उबिहमाणे वा' उद्विध्यन् उत्क्षिपन् इत्यर्थः, 'पबिहमाणे वा' प्रविध्यन् प्रक्षिान् इत्यर्थः 'कइकिरिए' कतिक्रियः-लोहमतापकाग्न्यागारेलोहाखण्डं दत्वा तं लोहं लोहनिर्मितसंदंशेन ऊर्ध्वमधः कुर्वन् पुरुषः कतिभिः क्रियाभिः स्पृष्टो भवति, इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमे' त्यादि गोयमा' हे गौतम ! 'जावं च णं से पुरिसे' यावत् च खलु स पुरुषः 'अयं अयकोसि' अयो लोहम् अयः कोष्ठे 'अयोमएणं संडासएणं' अयोमयेन लोहनिर्मितेन संदंशकेन 'उबिहइ वा पबिहइ' उद्विध्यति-उत्क्षिपति वा प्रविध्यति-प्रक्षिपति वा 'तावं च णं से पुरिसे' तवात् च खलु स पुरुषा 'काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए' कामिक्या यावत् माणतिपातक्रियया, अत्र यावत्पदेन-अधिकरणी, माद्वेपिकी, परितापिनीकी क्रियाणां तिसृणामपि ग्रहणं भवति, 'पंचहि किरियाहिं पुढे पञ्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टः अयः प्रतापनार्थे कुम्ले लोहं प्रक्षिप्य मन्वलतं तम् लोहे के बने हुए संडास ले 'उबिहमाणे वा पबिहमाणे वा ऊँचा नीचा करता है-अर्थात् उलटता पलटता है-ऐसी स्थिति में वह पुरुष 'कइकिरिए' कितनी क्रियाओंवाला होता है-तात्पर्य पूछने का यह है कि भष्टि में रहे हुए लोहे को जो पुरुष संडासी द्वारा उसी के भीतर उसे उलटता पलटता है उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? इस प्रश्न के उत्सर में प्रभु उनले कहते है-'गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे' हे गौतम! जिनने समय तक वह पुरुष अयं अयकोहसि-लोहेको लोह कोष्ट में-भट्ठी में 'अयोमएणं संडाल एणं' लोहनिर्मित संडास के द्वारा 'उन्धिहह वा पविहह वा 'ऊँचा नीचा करता है। 'तावं च णं से पुरिसे तब तक-उत्तने समय तक-वह पुरुष 'झाइयाए जाच पाणा. इवायकिरियाए' कायिकी क्रिया से लेकर प्राणातिपात तक की पांचों उनी सासाथी “उबिहमाणेवा पविहमाणेवा" ये नये ४२ छे. अर्थात सरासरी ३२वे छे. तवी स्थिति ५३५ “इकिरिए" ही કિયાવાળે થાય છે પૂછવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ભઠ્ઠીમાં રહેલા લેખંડને જે પુરૂષ સાણસી વડે ભઠ્ઠીની અંદર તેને ઉલટસૂલટી ફેરવે છે તે પુરૂષને કેટલી ક્રિયા લાગે છે? उत्तर-महावीर प्रभु ४ छ । “गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे" 3 गीतम! २८मा समय सुधी व न महीमा "अयोमएणं संडासएणं" auनी सासी 43 " उव्विहइ वा पबिहइ वा" या नीया ४रे छ. "तावं च णं से पुरिसे" तेरा अभय सुधी ते ३१ "काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए" या याथी धन मधिनी , प्रादेषिकी परिताप.
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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