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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० ८ सु०१ लोकस्वरूपनिरूपणम् २९१ 'सोहम्मस्स णं भंते ! पुरथिमिल्ले चरिमंते कि जीवा जीवदेसा जीवपएसा अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा' इत्यादि रूपेण शर्करा पृथिवीवदेव प्रश्नोत्तरवर्णनं करणीयम् । कियत्पर्यन्तं वर्णनं करणीयम् तत्राह-'जाव अच्चुयस्स' यावदच्युतस्य अच्युतकल्पपर्यन्तम् यावत्पदेन ईशानादारभ्य आरणदेवलोकपर्यन्तं वर्णनं विज्ञेयम् 'गेवेज्जविमाणाणं एवं चेत्र' अवेयकविमानानाम् एवमेव प्रैवेयकविमानसम्बन्धिचरमान्तेष्वषि एवमेव वर्णनं विज्ञेयम् । अवेयके इतरापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदाह-'नवरं' इत्यादि । 'नवरं उवरिमहेठिल्लेसु चरिमंतेसु देसेसु पंचिंदियाण वि मज्झिल्लविरहिओ चेव' नवरं उपरितनाधस्तनचरमान्तप्रकार का सब वर्णन जानना चाहिये। इसका खुलासा प्रश्नोत्तर के रूप में इस प्रकार से है लोहम्मस्स णं भंते ! पुरथिमिलले चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीवपएसा, अजीवा अजीवदेसा, अजीवपएसा' इत्यादि-हे भदन्त ! सौधर्मदेव लोक के पूर्वदिशा के चरमान्त में क्या जीव हैं ? जीव देश हैं ? जीव प्रदेश है ? तथा-अजीव है ? अजीव देश हैं ? अजीव प्रदेश हैं ? इत्यादि रूप से शर्करापृथिवी के जैसा ही यहां प्रश्नोत्तर का वर्णन कर लेना चाहिये। और यह वर्णन ईशान, से लेकर अच्युत देवलोक तक जानना चाहिये। 'गेवेज्जविमाणाणं एवं चेव' अवेयकविमानों के चरमान्तों में भी इसी प्रकार का वर्णन जानना चाहिये। ग्रैवेयक में विमानसंबन्धी चरमान्तों में इतर चरभान्तों की अपेक्षा से जो पिलक्षणता है वह 'नवरं उपरिमहेढिल्लेसु चरिमंतदेसेसु पंचिंदियाण वि मजिमल्लविरहिओ चेव' इस सूत्र द्वारा प्रकट પ્રકારનું સઘળું વર્ણન સમજવું. આની સ્પષ્ટતા પ્રશ્નોત્તરના રૂપમાં નીચે પ્રમાણે छ. "सोहम्मस्स ण भंते ! पुरस्थिमिल्ले चरिमान्ते किं जीवा, जीवदेसा जीव पएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा" मगवन् सीधम ठेवला ना पूशाना ચરમાન્તમાં શું જીવ છે? જીવદેશ છે કે જીવપ્રદેશ છે? તથા અજીવ છે? અજીવ દેશ છે? કે અજીવપ્રદેશ છે.? વગેરે રૂપથી શર્કરા પૃથ્વીની માફક અહિયાં પ્રશ્નોત્તરરૂપે વર્ણન સમજી લેવું, અને તે વર્ણન ઈશાન દેવલોથી લઈને भयुत व सुधी सभा. "गेवेज्जविमाणाणं एवं चेव" अवेय विमानाना ચરમાન્તમાં પણ આ રીતનું વર્ણન સમજી લેવું. રૈવેયકોના વિમાન સંબંધી यभान्तानी अपेक्षा विषशता छे. ते या प्रमाणे छ "नवरं उवरिमहेडिल्लेसु चरिमंतेसु देसेसु पंचिंदियाण वि मन्झिल्लविरहिओ चेव" मा सूत्र द्वारा पट
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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