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________________ भगवती सूत्रे २५६ नानाकारोपयोगः केवलदर्शनानाकारोपयोगः इत्योद्युपयोगविषयकं प्रज्ञापनाप्रकरणम् | 'पासणयापदं च निरवसेसं नेयच्वं' एवं पश्चतापदं च प्रज्ञापना मूत्रस्थं निरवशेषं तम् पश्यतापदं प्रज्ञावनास्थमिह सर्वमपि पठितव्यम् तच्च प्रज्ञापनायां त्रिंशत्तमं पदम् तच्चैत्रम् 'कहिविहा णं भंते ! पासणया पण्णत्ता' कतिविधा खलु भदन्त । पश्यता पज्ञप्ता । 'गोयमा ! दुविधा पासणया पण्णत्ता' गौतम ! द्विविधा पश्यता प्रज्ञा पश्यताविशिष्टवोध परिणामरूपा, सा च द्विविधा तामेव दर्शयति 'तं जहा' तद्यथा 'सागारपासणया अणागारपासणया' साकार पश्यता अनाकार पश्पता च ' सागारपासगया णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता' साकारवश्यता खलु भदन्त ! कतिविधा प्रज्ञता 'गोयमा ! छच्चिहा पन्नता' गौतम ! पविधा पज्ञता 'तं जहा' तयया 'सुयणाणसागारपासण्या' श्रुनज्ञान ओगे' से। यह प्रज्ञापना सूत्र का पाठ जो कि उपयोग के विषय में कहा गया है यहां पर भी इसी प्रकार से कह लेना चाहिये । इस पाठ का अर्थ सरल है । 'पालणयापदं च निरवसेसं नेपच्वं प्रज्ञापनास्थ पश्यतापद यहां सम्पूर्ण रूप से ग्रहण करना चाहिये ऐसा जे। कहा गया है - सो प्रज्ञापना में यह पद (तीस) ३० वां पद है जो इस प्रकार से है' कह विहाणं भंते ! पालणया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुबिहा पासण्या पण्णत्ता'' पश्यना (देखना रूप) यह विशिष्ट बोध के परिणाम रूप होती है । यह पश्यत्ता दे। प्रकार की कही गई है - 'सागारपासणया, अणागारपासणघा' एक साकार पश्यता, दूसरा अनाकार पश्यता' सागापाणयाणं भंते | कह विहा पण्णत्ता?' हे भदन्त | साकार पश्यता कितने प्रकार की कही गई है ? 'गोधमा ! छव्विहा पण्णत्ता' हे गौतम साकार पश्यता ६ प्रकार की कही गई । 'तं जहा' जो इस प्रकार से अणगारोव ओगे' उपयोजना विषयभां प्रज्ञापना सूत्रभां भा पाठ उद्योछे. ते अडियां पाशु तेरीने भूभल सेवा. 'पासण्या पदच निरवसेसं नेयव्वम्' અહિયાં પ્રજ્ઞાપનામાં રહેલ ત્રીસમું પશ્યતાપદ સપૂર્ણ' રૂપે ગ્રહણ કરવું તે यह भी प्रमाणे छे. 'कइत्रिणं भंते! पाम्रणया पण्णत्ता गोयमा ! दुविहा पास णया पण्णत्त' पश्यता (लेवा३५) विषेश गोधना परिलाभ ३५ होय छे. भा पश्यता में प्रभारनी ही छे ते या रीते छे. 'सागारपासणया, अणागारपासण ग' थे साजर पश्यता भने भीक मनागार पश्यता, 'सागारपास णयाणं भते ! कइविहा पण्णत्ता' हे भगवन् ! साार पश्यता डेटा प्राश्नी डेवासां भावी हे 'गोयमा | छव्विहा पण्णचा' हे गौतम | साहार पश्यता १ अमारनी कडेवामा भावी छे. 'त' - जद्दा' ते या प्रभावे छे. 'सूचनाण
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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