SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ૧૮ भगवतीसूत्र अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे' इत्यन्तस्य ग्रहणं भवति शुश्रूषमाणः, नमस्यन् , अभिमुखः, विनयेन प्रान्तलिपुटा, 'तए णं समणे भगवं महावीरे' ततः खल श्रमणो भगवान् महावीरः 'गंगदत्तस्स देवस्स तीसेय जाच धम्म परिकहेई' गङ्गदत्तस्य देवस्य तस्यां च यावद् धर्म परिकथयति, अत्र यावत्पदेन 'महातिमहालयाए परिसाए' इत्यादि 'अरिहा' इत्यन्तस्य ग्रहणं भवति । 'जाव आराइए भवइ' यावद् आराधको भवति अत्र यावत्पदेन 'तेसिं सव्वेसि' इत्यारभ्य 'आणाए' इत्यन्तस्य ग्रहणं भवति । अत्र औपपातिकसूत्रगतधर्मकथा वर्णन उसने प्रभु की प्रयु पालना की-यहां यावत्पद से 'नातिदूरे सुस्मसमाणे, णमंझमाणे, अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे 'इन पदों का ग्रहण हुआ है । 'तए णं समणे भगवं महावीरें' इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर ने गंगदत्तरस देवस्ल तीसेष जाच धम्म परिकहेह' गंगदत्त देव को और उस विशाल सभा को यावत् धर्मका उपदेश दिया-यहां यावत्पद से 'महातिमहाल पाए परिसाए' इत्यादि पदों से लगाकर 'अरिह' इस अन्तिम पद तक का पाठ गृहीत हुआ है । 'जाव राहए भवई' यावत् आराधक होता है। यहां यावत्पद से 'तेसिं सव्वेसि' इस पाठ से लेकर 'आणाए' इस अन्तिम पद तक का पाठ गृहीत हुआ है। यहां औपपातिक सूत्र गत धर्म कथा का वर्णन कर लेना चाहिये। 'तए णं माया यावत् ५४थी " नातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे " मा पह! य थया छे. तेन। म मई २ नहितभर બહુ નજીક નહિ એવા આસને બેસીને પ્રભુની સેવા કરતા નમસ્કાર કરતા પ્રભુની સન્મુખ વિનય સહિત હાથ જોડીને એ પ્રમાણે થાય છે. "तए णं समणे भगव' महावीरे" a पछी श्रम सगवान महावीरे " गंगदत्तस्त्र देवस्स तीसेय जाव धम्म परिकहेइ" पक्षी विशाण मेवात परिषमा प्रभुमे गत वने “अत्थिलोए अस्थि अलोए" के ने અલક પણ છે પાપ છે ને પુણ્ય છે. તેમજ બંધ અને મોક્ષના સ્વરૂપ વિગેરે श्रत यास्त्रि ३५ भनी पहेश आध्ये माडिया यावत् ५४थी " महातिमहालयाए परिसाए" इत्यादि' यहाथी दान “अरिह" से है यह सुधान। 18 अक्षय । 2. “जाव आराहए भवइ" यावत् ते हेप मा। ५ गया मालियां यावत् पहथी "तेसि सव्वेसिं" ये पाथी बन "आणाए" को ऐसा ५४ सुधीन। ५४नु हए थयुं छे. महियां भी५પાતિક સૂત્રના પૃષ્ઠ ૪૪૭ સૂ પદમાં કહ્યા અનુસાર સઘળી ધર્મદેશના સમજી લેવી વધારે વિસ્તારથી જાણવાની ઈચ્છાવાળાએ ઔપપાતિક સૂત્રમાં જોઈ લેવું
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy