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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०४ सू०२ शकेन्द्रविषयकप्रश्नस्पष्टीकरणम् १४७ गतः संकल्पः प्रादुर्भूत्तत्राह-एवं खलु' इत्यादि ‘एवं खलु समणे भगवं महावीरे एवं खलु श्रमणो भगान् महावीरः 'जंबूदीवे हीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'जेणेवमारहे वासे' यत्रैव भारत वर्ष क्षेत्रम् 'जेणेव उल्लुयतीरे नयरे' यत्रैव उल्लुकतीरं नाम नगरम् 'जेणेव एगजंबूर चेइए' यत्रैव एकजम्बूकनामकं चैत्यम् 'तेणेव'. तत्रैव 'अहापडिरूवं जाव विहरई' यथामविरूपं यावद् विहरति, अत्र यावत्पदेन 'उग्गहं उग्गिह्नित्ता संजमेणं तवसा अपाणं यावेमाणे' इति ग्राह्यम् , अवग्रहम् , अवगृह्य संयमेन तपसा आत्मानं भावयन्, विहरतीति सम्बन्धः 'त सेयं खल में वत् श्रेय:- खलु मे 'समगं भगवं महावीरं वंदित्त जाच पज्जुवासित्ता' श्रमणंजैसा हुवा । 'कप्पिए' कल्पितः धर्मदेशना सुनेगे इस रूप के कार्याकृति विचार ले पल्लवित जैसा हुआ। 'पथिए' प्रार्थित:' यों इष्ट साधन रूप में गृहीत होने से पुष्पित जैसा हुआ। 'मणोगए संकप्पे' मनोगतः संकल्पः प्रभु के पास जाकर धर्मदेशना सुनना ही श्रेयस्कर है यो मनमें दृढनिश्चय संकल्प से फलित जैसा हो गया। अब इसी पात की पुष्टि यहाँ से आगे मूत्रकार करते हैं-इस जंबूद्वीप नाम के द्वीप में स्थित जो 'भारहे वासे' भारतवर्ष नाम का क्षेत्र है, उसमें 'जेणेव उल्लुयतीरे नयरे' उल्लुकतीर नाम का नगर है और उस में भी जो 'एगजंवूए चेहए' एक जवुक नाम का उद्यान है, उसमें 'अहापडिरूवं जाब विहरई' यथाप्रतिरूप अवग्रह को धारण करके श्रमण भगवान् महावीर विराजमान हैं यहां थावत्पद से 'उग्गहं उग्गिह्नित्ता. संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे' इल पाठ का ग्रहण हुआ है। 'तं सेंयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वदित्ता जाव पज्जुवासित्ता' अतः વિચાર આવ્યું ? તે બાબતનું વર્ણન સૂત્રકાર કરે છે. આ જબૂદ્વીપ નામના द्वीप २a " भारहे वासे" मारत नामनुः क्षेत्र छे. तेभा " जेणेव उल्लुयतीरे नयरे " orui segsतार नाम ना२ छ. मन तमा ५२ “एग जबुए चेइए" मे नामनु धान छ. " अहापडिरूवं जाव विहरइ" યથાપ્રતિરૂપ અવગ્રહને ધારણ કરીને શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામી વિરાसमान छ. महिया ‘यावत्, पथा “ उग्गहं उग्गिद्वित्ता संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे " सा पाना सई थयो छे. तेन। अर्थ मा प्रभारी छ અવગ્રહને-વનપાલની આજ્ઞા ધારણ કરીને સંયમ અને તપથી આત્માને लावित ४२ "तं सेयं खलु मे खमण' भगवं महावीरं वदित्ता जाव पज्जुवासित्ता." रथी वे भ म योग्य छ श्रम सगवान महावीरने,
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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