SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१० भगवती इयं णं मंते !' यावत्कं खलु भदन्त ? 'दसमभनिए ममणे निग्गंध नम्मं निग्नरेइ दशमभक्तका उपवाम चतुष्टयकर्ता श्रमणो नियः कर्म निर्जरयनि, 'एवइयं करम नरपसु नेरझ्या वासकोडीए वा, वासकोडीहिं था, वासकोडाकोडिए वा खनयंति' एतावत्कं कर्म नरकेपु नेरयिकाः वर्षकोटया वा, वर्षकोटिभिर्श, वर्षः कोटीकोटया वा क्षपयन्ति यावत्संख्यक कर्म बलकालेन विनाशयति साधुः तावत्कं कर्म तत्तदुक्त कालेनापि वा किं नारकाः विनाशयन्गीति पूर्वपक्षः, भगबानाह-'णो इणढे समटे' नायमः समर्थः नोभयोः मादृश्यं संघटने इत्यर्थः कारणज्ञानाय प्रश्नयति 'से केणटेणं' इत्यादिना से केणटेणं भंते !' तत्केनानहीं कर सकते हैं । पुनः गौतम प्रभु से पूछते हैं-'जा पायं गं भंते ! 'हे भदन्त ! जितने 'कम्म' कर्मों को दसमभलिए' ४ उपवाम करने. वाला 'समणे निग्गथे' श्रषण निर्गन्ध 'निज्जरे खमिलकर देता है। 'एवश्यं कम्मं नरएलु नेरहया चालकोडीए वाखकोडीहि, वा, यालकोडा. कोडीए वा खवयंति' उतने कोको क्या नरक में रहने वाला नरक जीव १ करोड वर्ष में, अनेक करोड वर्षों में कोटाकोटि वर्षों में नष्ट करने के लिये समर्थ हो सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'जो इणढे सम?' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं-अर्थात् जितने कर्मों का विनाश ४ उपवास करनेवाला श्रमण निन्ध कर देता हैउतने कर्मों का विनाश नरक में वर्तमान नारकजी अधिक से अधिक १ कोटाकोटोकाल में भी नहीं कर सकता हैं। इस प्रकार से दोनों की समानता फर्मों के क्षय करने में शिली प्रकार से नहीं होती है। अब नथी शव गौतम स्वामी पूछे छे ? "जावइयंण भंते ! 3 सपन! २८मा समयमा "कम्म" भनि “ समभत्तिए " या त्रास ४२१ावाजा " रामणे निग्गये" श्रम नि “निज नरेइ" नि । ४२ छ. मर्थात् सपा छ. “ एवइय कम्मं नरएसु मेरइया वासकोडीए वासकोडीहिं वा, वासकोडाकोडीए वा संघ. यति" मा ४ न२४ २९स ना२४ ७३ शु मे ४२।३ १ मां है કરડે વર્ષમાં કે કેટકેટિ વર્ષોમાં નાશ કરવાને સમર્થ થાય છે તેના Gत्तरभां प्रभु छ , " णो इणटे सम्ट्रे" गौतम ! मा म परामर નથી અર્થાત્ જેટલા કર્મોની નિજ ચાર ઉપવાસ કરનાર શ્રમણ નિથ ડાં સમયમાં કરે છે. એટલા કર્મોની નિર્જરા નરકમાં રહેલ નારક જીવ વધારેમાં વધારે એક કેટકેટ કાળમાં પણ કરી શકતા નથીઆ રીતે કર્મોના ક્ષય કરવામાં કઈ પણ રીતે બનેની બરાબરી થઈ શકતી નથી.
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy