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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ७५ दस संखेज्जपएसिया खं ग भांति,' अथवा दश संख्येयमदेशिकाः स्कन्धा भवन्ति, 'संखेज्जहा कज्जमाणे संखेज्जा परमाणुपोग्गला भवंति' संख्येयप्रदेशिका स्कन्धः संख्येयधा क्रियमाणः संख्येयाः परमाणुपुद्गला भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'असंखेज्जा भंते ! परमाणुपोग्गला, एगयओ साहणंति, एगयो साहणित्ता किं भवइ ?' हे भदन्त ! असंख्येयाः परमाणुपुद्गलाः-एकता-एकतया संहन्यन्ते-संहता भवन्ति, एकता-एकतया संहत्य-संघीभूय किं स्वरूपं वस्तु भवति ? भगवानाह-'गोयमा ! असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ' हे गौतम ! असंख्येयाः परमाणुपुद्गलाः एकतया संहत्य असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भवति' से भिज्जमाणे दुहावि जाच दसहावि संखेज्जहावि, असंखेज्जहा वि कज्जइ' सो 'अहवा दस संखेज्जपएलिया खंधा भवंति' इसके दशे संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं। 'संखेज्जहा काजमाणे संखेज्जा परमाणुपोग्गला भवंति' संख्यात विभागों में विभक्त जब यह संख्यातप्रदेशी स्कन्ध किया जाता है, तप संख्यात पुद्गलपरमाणु के संख्यात विभाग होते हैं। अथ गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'असंखेज्जा भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति, एगयओ साहण्णित्ता किं भवइ' हे भदन्त ! असंख्यात परमाणुपुद्गल जब एकट्टे होते हैं-तब उनले क्या वस्तु उत्पन्न होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयला! असंखेज्जपएलिए खंधे भवइ' हे गौतम | असंख्यात पुनलपरमाणु जब आपस में एकत्रित हो जाते हैं-तथ उनके उस मिलाप से असंख्यातप्रदेशी एक स्कन्ध उत्पन्न होता है। 'से भिज्जमाणे दुहावि जाच दसहा वि संखेज्जहा न१ २४ । ३५ न१ विना थाय छे “अहवा- दस संखेजपएसिया खंधा भवंति" अथवा सभ्यात प्रशाामा स २४५ ३५ ४स विभाग ५ थ छ. " संज्जहा कज्जमाणे संखेज्जा परमाणुपोग्गला भवंति" તે સંખ્યાત પ્રદેશી સ્કલના જ્યારે સંખ્યાત વિભાગે કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુલવાળા સંખ્યાત વિભાગોમાં તે સ્કધ વિભક્ત થઈ જાય છે. જે गौतम स्वाभान प्रश्न-" असंखेज्जा भंते ! परमाणुपोगाला एगयओ साहणंति, एगयओ साहण्णित्ता किं भवइ ?" 3 सगन् ! मसच्यात परमार પુદ્ગલે જ્યારે એક બીજા સાથે એકત્ર થાય છે, ત્યારે શું ઉત્પન્ન થાય છે ? महावीर प्रसुना उत्त२-" गोयमा ! असंखेज्जपएसिए खंधे भवह" ગૌતમ! અસંખ્યાત પરમાણુ પતલે જ્યારે એક બીજા સાથે એકત્રિત થાય છે, ત્યારે તેમના સાગથી અસખ્યાત પ્રદેશી એક સ્કંધ ઉત્પન્ન થાય છે.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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