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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ६३ गौतमः पृच्छति-'संखेज्जा भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नति, एगयो साहणित्ता किं भवइ ?' हे भदन्त ! संख्येयाः परमाणुपुद्गला. एकतः एकतया संहन्यन्ते, संहता भवन्ति, संघीभवन्तीत्यर्थः, एकता-एकत्वेन संहत्य-संघीभूय किं स्वरूपं वस्तु भवति? इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा! संखेज्जपएसिए खंधे भवई' हे गौतम ! संख्येयाः परमाणुपुद्गलाः एकत्वेन संहत्य संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'से भिज्जमाणे दुहावि जाव दसहा वि संखेज्जहा वि कज्जइ' स खलु संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भिधमानो द्विधापि, यावत्-त्रिधापि, चतुर्धापि, पञ्चधापि, पोटापि, सप्तधापि, अष्टधापि, नवधापि, दशधापि, संख्येयधापि क्रियते, तत्र गुपोग्गला, भवति ' जब यह दशप्रदेशिकस्कंध दश विभागों में विभक्त किया जाता है तप दश परमाणुपुदगल ही इसके दश विभाग होते हैं। ____ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'संखेज्जा भंते ! परमाणुपोग्गला एगयो साहन्नति, एगयओ साहणित्ता किं भवह' हे भदन्त ! संख्यात परमाणुपुद्गल जष एकरूप से आपस में मिलते हैंतब उनसे क्या उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! संखेज्जपएसिए खंधे भवा' हे गौतम ! संख्यातपुद्गलपरमाणु जय आपस में मिल जाते हैं तब उनसे संख्यात प्रदेशी एक स्कंध उत्पन्न होता है। 'से भिज्जमाणे दुहा वि जाव दसहा वि संखेज्जहा वि कज्जह' जब इस संख्यातप्रदेशी स्कंध का विभाग किया जाता है तब इसके दो भी, तीन भी, चार भी, पांच भी, छह भी, सात भी, आठ भी, नौ भवंति " ल्यारे इस शिर धन इस विमान ४२पामा माछ ત્યારે દસે વિભાગમાં એક એક પરમાણુ યુદ્ગલ હોય છે. ., गौतम स्वामी प्रल-" संखेज्जा भंते ! परमाणुपोग्गला एगयो साह मंति, एगयो साइण्णिता किं भवइ ?" भगवन् ! सभ्यात परमार યુગલે જ્યારે એક બીજા સાથે મળી જાય છે, ત્યારે તેમના સંગથી શુ ઉત્પન્ન થાય છે? महावीर असुनी हत्तर-" गोयमा ! संखज्जपएसिए खंभे भव:' હે ગૌતમ! જ્યારે સંખ્યા પરમાણુ પુલે એક બીજા સાથે મળી જાય છે, ત્યારે તેમના સગથી સંખ્યાત પ્રદેશી એક સ્કંધ ઉત્પન્ન થાય છે. “से भिन्जमाणे 'दुहा वि जाव दसहा वि संखेन्जहा वि कज्जइ" मा સંખ્યાત પ્રદેશી કપના જ્યારે વિભાગે કરવામાં આવે છે, ત્યારે બે, ત્રણ, ચાર, પાંચ, છ, સાત, આઠ, નવ, દસ અથવા સંખ્યાત વિભાગમાં તે
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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