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________________ भगवती • ५४ चार-पूर्वोक्तं सर्व संग्राह्यम् , अन्तिममभिलापमाह-अथवा द्वौ पञ्चमदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'तिहा कज्जमाणे एगयो दो परमाणुपोग्गला एगयो अट्ठपएसिए खधे भवइ' दशप्रदेशिकः स्कन्धः त्रिधा क्रियमाणः एकतः-एकमागे द्वौ परमाणुपुद्गलौ भवतः, एकतः-अपरभागे अष्टप्रदेशिकः स्कन्धो भवति “अहवा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ सत्तपएसिए खंधे भवई' अथवा एकत'-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकता-अपरभागे द्विपदे. शिकः स्कन्धो भवति, एकता-अन्यभागे सप्तादेशिकः स्कन्धो भवति, "अहवा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ तिप्पएसिए खधे भवइ, एगयओ छप्पपसिए खंधे भवइ' अथवा एकता-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकत:-अपरभागे पूर्वोत्तरीति के अनुसार एक एक की वृद्धि करना चाहिये -यावत् अथवा दो पांच प्रदेशिक स्कंध होते हैं, यह इसका अन्तिम भंग है। 'निहाकजमाणे एगपओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ अपएलिए खंधे भवई' जब इस दशप्रदेशी स्कन्ध को तीन भागो में बांटा जाता है-तब एक भाग में दो परमाणुपुद्गल होते हैं, और दूसरे भाग में आठ प्रदेशोंवाला एक स्कन्ध होता है ! 'अहवा-एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयो सत्तप्पएसिए खंधे भवइ ' अथवा-एक भाग में एक परमाणुपुद्गल होता है, एक दूसरे भाग में द्विदेशी स्कन्ध होता है, और अन्य भागमें एक सप्तप्रदेशी स्कन्ध होता है ! 'अहवा-एग. यो परमाणुपोग्गले एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ, एगयो छप्प. एलिए खंधे भवइ' अथवा एक भाग में एक परमाणुपुद्गल होना है, વૃદ્ધિ કરીને બાકીના ત્રણ વિકલ્પ પણ બનાવી લેવા જોઈએ છેલ્લે વિકલ્પ આ પ્રમાણે બનશે-“અથવા પાંચપ્રદેશિક બે સ્કંધ રૂપ બે વિભાગમાં તે सहशि ४ विभत थय छे. “तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयो अदुपएसिए खंधे, भव" ते इस प्रशियन न्यारे ત્રણ વિભાગે કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પુદ્ગલ પરમાણુવાળા બે विलागी मन से अष्टप्रशि: ७५३५ मे विHIA थाय छे. “ अहवाएगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ दुप्पएसिए खंधे एगयओ सत्तप्पएसिए खंधे भवइ" अथवा मे ५२मा पुलवामा में विHII, विप्रहशि ४ અંધરૂપ બીજો વિભાગ અને સપ્તપ્રદેશિક એક સ્કંધરૂપ ત્રીજી વિભાગ થાય છે. अहवा-एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ, एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ' मथा मे ५२मा पुगत ३३ मे विमान, निशिs
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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