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________________ भगवती सूत्रे ६३ 'सिया खंधा भवंति' अथवा एकतः - एकभागे पञ्च परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकतः अपरभागे द्वौ द्विपदेशिकौ स्कन्धौ भवतः 'अहा कज्जमाणे एगयओ सत्त परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पए सिए खंधे भव' नवमदेशिकः स्कन्धः अष्टधा क्रियमाणः, एकत: - एकभागे सप्त परमाणुपुद्गलाः, भवन्ति, एकत: - अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, 'नवदा कज्जमाणे नव परमाणुपोग्गला भवंति ' नवप्रदेशिकः स्कन्धो नवधा क्रियमाणो नवपरमाणुपुद्गलाः भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'दस भंते । परमाणुपोग्गला जाव दुडा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ नवपए सिए खंधे भवई' हे भदन्त ! दशपरमाणुपुद्गलाः एमओ दो दुप्पएसिया खंधा भर्वति' अथवा एक भाग में पाँच परमाणु पुद्गल होते हैं और दूसरे एक भाग में दो द्विमदेशी स्कन्ध होते हैं । "अट्टहा कज्ज माणे एमओ सत्तपरमाणुपोग्गला एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ" यह नौप्रदेशों वाला स्कन्ध जब आठ विभागों में विभक्त किया जाता है तब एक भाग में सात परमाणुपुद्गल होते हैं, और एक दूसरे भाग में एक विदेशी स्कन्ध होता है ! 'नवहा कज्जमाणे नव परमाणुपोग्गला हवंति ' नौ प्रदेशोंवाला स्कन्ध जब नौ विभागों में विभक्त किया जाता है तब इसके विभक्त नौ परमाणुपुद्गल ही नौ विभाग होते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' दस भंते! परमाणुपोग्गला जाब दहा कलमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ नवपएसिए खंधे भवइ ' हे भदन्त ! दश परमाणुपुद्गल आपस में मिलते हैं - तब એક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ થાય છે. “ अहवा - एगयओ पंच परमाणुपोग्गला, एगयआ दो दुप्पएसिया खंधा भवंति " अथवा मे मे परम युद्धसवाजा પાંચ વિભાગેા અને દ્વિપ્રદેશિક એ સ્કધરૂપ એ વિભાગા થાય છે. 66 अट्टहा कंज्जमाणे एगयओ सत्त परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ " ते નવ પ્રદેશિક સ્કધતા જ્યારે આઠ વિભાગ કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા સાત વિભાગે અને દ્વિપ્રદેશિક એક સ્મુધ રૂપ એક विलास थाय छे, “ नवहा कज्जमाणे नव परमाणुपाग्गला हवंति " ते नव પ્રદેશિક ધના જ્યારે નત્ર વિભાગેા કરાય છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા નવિનેભાગેામાં તે સ્કંધ વિભક્ત થઈ જાય છે गौतम स्वाभीनो प्रश्न- " दस संते ! परमाणुपग्गिला पुच्छा " है लगवन् ! જ્યારે દસ પરમાણુ પુદ્દગલા એક ખીજા સાથે મળી જાય છે, ત્યારે કઈ વસ્તુ ઉત્પન્ન થાય છે ?
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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