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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श०१२ ३०४९०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् भवति, एकता-अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकता-अन्यभागे द्वौ त्रिपदेशिकौ स्कन्धौ भवतः, 'अहवा एगयओ तिनि दुप्पएसिया खंधा, एगयो तिप्पएसिए खंधे भवई' अथवा एकत:-एकभागे त्रयो द्विपदेशिका: स्कन्धा भवन्ति, एकता-अपरभागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'पंचहा कज्जमाणे एगयो चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ' नव प्रदेशिका स्कन्धः पञ्चधा क्रियमाणः एकतः-एकभागे चत्वारः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकत:अपरभागे पश्चप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ तिथि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ, चउप्पएसिए खंधे भवइ' अथवा एकता-एकभागे त्रयः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकत:- अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भाति, एकत:-अन्यमागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, "अहवा एगयओ तिन्नि एगयओ दो तिप्पएसिया खंधा भवंति, अथवा-एक भाग में एक परमाणु पुद्गल होता है, एकभाग में एक द्विप्रदेशी स्कन्ध होता है और एक अन्य भाग में दो त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं । ' अहवा-एगयो तिन्नि दुप्पएसिया खंधा, एगयओ तिपएसिए खंधे भवई' अथवा-एक भाग में तीन बिप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं, और दूसरे भाग में एक त्रिप्र. देशिक स्कन्ध होता है । 'पंचहा कज्जमाणे एगयओ चत्तारि परमाणु पोग्गला एगयओ पंचपएसिए खंधे भवई' जब नौ प्रदेशवाले स्कन्ध को पांच हिस्सों में बांटा जाना है-तय एक तरफ चार परमाणुपुद्गल होते हैं और दूसरी तरफ पांच प्रदेशोंवाला एक स्कन्ध होता है'अहवा एगयो तिनि परमाणु-पोग्गला एगयो दुप्पएसिए खंधे, एगपओ चउपसिए खंधे भवई' अथवा-एक भाग में तीन परमाणुपुगल होते हैं, एक दूसरे भाग में विप्रदेशिक स्कन्ध होता है और अन्य વિભાગ, એક ઢિપ્રદેશિક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ અને ત્રિપ્રદેશિક બે કપ ३५ मे विभाग याय छे. “ अहवा-एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया खधा, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भव" अथवा विशिay २४५ ३५ ३. विभागी भने त्रिप्रशि२४५ ३५ मे विHIT थाय छे. “पंचहा कन्जमाणे. एगयओ पत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ पंच पएसिए खंधे भव" ते नवशिक्ष અધના જ્યારે પાંચ વિભાગો કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક. એક પુતલપરમાણુવાળા ચાર વિભાગો અને પાંચપ્રદેશિક કપ રૂપ એક, વિભાગ થાય છે. "महवा-एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खघे, एगयोपउप्पएसिए खंधे भवइ" मया मे मे ५२मार पुलवा विमा, मे निशि : मन मे या२ प्रशि: २४५ याय है. “अहवा-एग ०७
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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