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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० १० अवगाहनाद्वारनिरूपण १९७ अनन्ता जोवास्तिकायपदेशा अवगाहा भवन्नि, गौतमः पृच्छति-'केवइया पोग्गलथिकायपएसा' हे भदन्त ! एकधर्मास्तिकायपदेशस्थाने कियन्तः पुद्गलास्ति कायमदेशा अवगाहा भवन्ति भगानाह-'अणंता' हे गौतम तत्र अनन्ताः पुद्लास्तिकायपदेशा अवगाढा भवन्ति, जीवास्तिकायपुद्गलास्तिकाययोरनन्तानां प्रदेशानाम् एकैफस्य धर्मास्तिकायप्रदेशस्य स्थाने समावेन, तस्य तैः प्रत्येक मनन्तैरेव व्याप्तत्वादिति भावः, गौतमः पृच्छति-'केवइया अद्धासमया ?' हे भदन्त ! कियन्तः अद्वांसमयाः एकधर्मास्विकायपदेशस्थाने अवगाहा भवन्ति ? भगवानाह-'सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा, जई ओगाहा, अणंता' हे गौतम ! ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-केवया पोग्गलथिकायपरसा' हे भदन्त ! एक धर्मास्तिकायप्रदेश के अवगाह स्थान में पुद्ग लास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाह-स्थित होते हैं-उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अणंता' हे गौतम! वहां पर पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेश अवगाढ होते हैं। जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेशों का एक एक धर्मास्तिकायप्रदेश के स्थान में सद्भाव होता है इससे वे प्रत्येक अनन्त प्रदेश उस धर्मास्तिकाय के प्रदेश को व्याप्त करते हैं। __ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवया अद्धासमया' हे भदन्त ! एक धर्मास्तिकायप्रदेशस्थान में कितने अद्धासमय अवगाढ. स्थित होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा, अणंना' हे गौतम ! वहां पर अद्धासमय कदाचित् अवगाढ Gत्तर-" अणंता" गो14 ! त्या वास्तायना मनात प्रदेश અવગાહિત હોય છે. गौतम स्वामी प्रश्न-" केवइया पोरगलस्थिकायपएसा ?” 8 सपन् ! એક ધર્માસ્તિકાયપ્રદેશના અવગાહના સ્થાનમાં પગલાસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશ અવગાહિત હોય છે ? उत्तर-" अणंता" गौतम । त्यो पुगतास्तियन मन त प्रदेश। અવગાઢ હેય છે. જીવાસ્તિકાય અને પુદ્ગલાસ્તિકાયના અનંત પ્રદેશને એક એક ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશના સ્થાનમાં સદ્ભાવ હોય છે તેથી તે પ્રત્યેકના અનંત પ્રદેશે તે ધર્માસ્તિકાયના પ્રદેશને વ્યાપ્ત કરે છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-" केवइया अद्धासमया " . सगवन् ! સ્થાનમાં ધર્માસ્તિકાયનો એકપ્રદેશ અવગાહિત હોય છે, તે સ્થાનમાં કેટલા અદ્ધાસમય અવગાહિત (સ્થિત) હોય છે? महावीर प्रभुना त्तर-"सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा, जइ ओगाढा
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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