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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० १० अवगाहनाद्वारनिरूपण ६७५ भोगाढा ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! यत्र खलु स्थाने एकः धर्मास्तिकायप्रदेशोऽवगाढो भवति तत्र स्थाने फियन्तो धर्मास्तिकायप्रदेशा अवगाढाः स्थिता भवन्ति ? भगवानाह-'नस्थि एको वि' हे गौतय ! यत्र प्रदेशे धर्मास्तिकायस्य एकः प्रदेशोऽवगाढो भवति तत्र अन्यस्वत्प्रदेशो नास्ति एकोऽपि एकधर्मास्तिकायप्रदेशस्थाने अन्यस्य धर्मास्तिकायम देशस्य अविद्यमानत्वात् , गौतमः पृच्छति-'केवइया अहमत्यिकायप्पएसा ओगाढा ? ' हे भदन्त ! यत्र एको धर्मास्ति काय प्रदेशोजगाढोऽस्ति तत्र कियन्तः अधर्मास्तिकायमदेशा अबगाढा भवन्ति ? मगवानाह-' एको' हे गौतम ! एक वर्मास्तिकायप्रदेशावगाहनाथिकायपएसे ओगाढे, तत्थ केवड्या धम्मत्यिकायपएसा ओगाढा' हे भदन्त! जिस स्थान पर एक प्रदेश धमौस्तिकाय का अवगाह होता है अर्थात् आकाश के जिस प्रदेश में धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाहित है-रहाहमा है-वहांधीस्तिकाय के और कितने प्रदेश अवगाहस्थित हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'नथि एको वि' हे गौतम ! जिस प्रदेश में धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाह होता है, उस प्रदेश में धर्मास्तिकाय का दूसरा प्रदेश अवगाढ नहीं होता है क्योंकि वह वहां अविद्यमान रहता है। अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवइया अहम्मस्थिकायपएसा ओगाढा' हे भदन्त ! जिस स्थान पर धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है-वहाँ पर अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एको' हे गौतम! जिस स्थान पएसा ओगाढा ?" मापन ! २ स्थान ५२ धातियो मे प्रदेश અવગાહિત હોય છે-એટલે કે આકાશના જે પ્રદેશમાં ધર્માસ્તિકાયને એક પ્રદેશ રહેલે હોય છે ત્યાં ધર્માસ્તિકાયના બીજા કેટલા પ્રદેશે અવગાઢ (२al) डाय छ ? महावीर प्रसुन उत्त२-“नथि एको वि" गौतम । २ प्रदेशमा ધર્માસ્તિકાયનો એક પ્રદેશ અવગાહિત હોય છે. તે પ્રદેશમાં ધર્માસ્તિકાયને બીજો એક પણ પ્રદેશ અવગાહિત હેત નથી, કારણ કે તે ત્યાં અવિદ્યમાન રહે છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न- केवइया अहम्मत्थिकायपएसा ओगाढा " ભગવાન ! જે સ્થાન પર ધર્માસ્તિકાયને એક પ્રદેશ અવગાહિત (સ્થિત) છે, તે સ્થાન પર અધર્માસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશે અવગાહિત હોય છે? महावीर प्रभुना त्त२-" एक्को" ३ गौतम ! २ स्थान ५२ धा.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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