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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ ४० ४० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् पोग्गले, एमओ दो चउप्परसिया खंधा भवंति ' अथवा एकत: - एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकत: - अपरभागे द्वौ चतुष्प्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'अहवा एगयओ दुष्पपसिए खंधे, एगयओ तिप्पएसिए खंवे, एगयओ चउप्पए'सिए खंधे भवइ ' अथवा एकत - एकभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतःअपरभागे त्रिदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अन्यभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति 'अहना तिम्नि तिप्पसिया खंधा भवंति' अथवा त्रयस्त्रिमदेशिकाः स्कन्धाः भवन्ति । 'चउहा कज्जमाणे एगयो तिन्नि परमाणुपोमाला, एगयओ उप्पएसिए खंधे भवइ' नवमदेशिकः स्कन्धवतुर्धा क्रियमाणः एकत: - एकभागे त्रयः परमाणुपुद् गलाः भवन्ति, एकतः - अपरभागे षट्प्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा दो परमाणुयोग्गला, एतयओ दुप्पएसिए खंधे, एगओ पंचपसिए ४७ ओ दो उपसिया खंधा भवति' अथवा एक भाग में एक परमाणुपुल होता है, और दूसरे भाग में दो चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होते हैं- ' अहवा - एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयभ तिप्पएसिए खंधे, एगयओ उप्परसिए खंधे भवइ" अथवा एकभाग में एक द्विप्रदेशी स्कन्ध होता - है एक दूसरे भाग में एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध होता है, और अन्य भागमें एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होता है । 'अहवा - तिनि तिप्पएसिया खंधा भवंति ' अथवा तीन स्कन्ध त्रिप्रदेशिक होते हैं । 'चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि' परमाणुपोगला, एगयओ छप्पएसिए खंधे भवद्द" यह नौ प्रदेशों वाला स्कन्ध जब चार भागों में विभक्त किया जाता है तब एक भाग में तीन परमाणुपुद्गल होते हैं- और दूसरे भाग में एक छह प्रदेशों वाला स्कन्ध होता है । 'अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला, 66 39 खंधा भवंति ” अथवा मे परमाणु युद्ध ३५ मेड विभाग, मने शार ચાર પ્રદેશાવાળા એ ધારૂપ એ વિભાગો થાય છે. अवा - एगयओ दुपसिए खंधे, एगयओ सिप्पए सए खंघे, एगयओ चठपएसिए खंधे भवइ અથવા દ્વિપ્રદેશિક એક 'ધ રૂપ એક વિભાગ, ત્રિપ્રદેશિક એક સ્ક'ધ રૂપ ખીજો વિભાગ અને ચાર પ્રદેશિક એક "ધ ત્રીજો વિભાગ થાય છે." अहवा - तिन्नि तिप्पएसिया खंधा भवंति " अथवा ऋणु त्रिप्रदेशि २४६ ३५ भक्षु विभाग थाय छे. " चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, ओ छपपक्षिए खंधे भवइ " क्यारे ते नव अहेशिक सधना यार विलागी કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા ત્રણ વિભાગા અને छप्रदेशि मे २४६ ३५ ४ विलाग थाय छे. " अहवा - एगयओ दो परमाणु
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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