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________________ ६५६ भगवतीसूके गौतमः पृच्छति - 'केनइएहिं पोग्गल स्थिका पपए सेहिं पुट्ठा ? ' हे भदन्त । कियदभिः पुद्गलास्तिकाय प्रदेश: संख्येयाः पुद्गलास्तिकायमदेशाः स्पृष्टा भवन्ति ? भगवानाह - ' अहं' हे गौतम | अनन्तैः पुद्गलास्तिकायप्रदेश: संख्येयाः पुद्गला-स्तिका प्रदेशाः स्पृष्टा भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'केवइएहि अद्धास मर्दि पुट्ठा ?" हेमन्त | कियद्भिः अद्धासमयैः संख्येयाः पुद्गलास्तिकाय प्रदेशाः स्पृष्टा भवन्ति ? भगवानाह - ' सिप पुढे सिय नो पुढे जाव अगतेहिं ' हे गौतम! अद्वासमयैः संख्येयाः पुद्गलास्तिकाय प्रदेशाः स्यात् - कदाचित् स्पृष्टा भवन्ति समय क्षेत्रापेक्षयाः स्यात् - कदाचित् नो स्पृष्टा भवन्ति समयक्षेत्राद्वहिरपेक्षया, यावत्गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - 'केवहएहिं पोग्गल स्थिकाय पए सेहिं पुट्ठा'. हे भदन्त ! कितने पुद्गलास्तिकाय प्रदेशों द्वारा संख्यात पुद्गलास्तिकाय प्रदेश स्पृष्ट होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'अणतेहि' हे गौतम! अनन्त पुद्गलास्तिकाय प्रदेशों द्वारा संख्यात पुद्गलास्तिप्रदेश स्पृष्ट होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'केवइ एहि अद्धासमएहिं पुट्ठा' हे भदन्त | कितने अद्धासमयों द्वारा संख्यात पुद्गलास्तिकायप्रदेश स्पृष्ट होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'सिय पुट्ठे, सिय नो पुट्ठे जाव अनंतेहिं' हे गौतम! अद्धासमयों द्वारा संख्यात पुद्गलास्तिकायप्रदेश कदाचित् स्पष्ट होते हैं और कदाचित् स्पृष्ट नहीं होते हैं। कदाचित् स्पृष्ट होते हैं ऐसा जो कथन है वह समयक्षेत्र की अपेक्षा से है क्योंकि समयक्षेत्र में ही अद्धासमय का सद्भाव है- समयक्षेत्र के बाहिर अद्धासमय का सद्भाव नहीं है । इसलिये वे उनके द्वारा स्पृष्ट नहीं होते हैं। समय- गौतभ स्वाभीना प्रश्न-“ केवइएहि पोगलत्थिकायपएसेहिं पुट्ठा ?" डे ભગવન્ ! કેટલા પુદ્ગલાસ્તિકાય પ્રદેશ દ્વારા સખ્યાત પુદ્ગલાસ્તિકાયપ્રદેશ પૃષ્ઠ થાય છે? उत्तर–“ अणंवेद्दि ” हे गौतम! अनंत युडुगसास्तिमायदेशी वड़े સખ્યાત પુંગલાસ્તિકાય પ્રદેશ પૃષ્ટ થાય છે. गौतम स्वामीनो प्रश्न–" केवइएहि अद्धासम एहि पुट्ठा १" हे भगवन् ! કેટલા અદ્ધાસમયેા વડે સખ્યાત પુદ્ગલાસ્તિકાય પ્રદેશે સ્પષ્ટ થાય છે ? भडावीर अलुना उत्तर- " सिय पु ेळे, सिय नो पुट्ठे जाव अणतेहि " હે ગૌતમ 1 સખ્યાત પુદ્ગલાસ્તિકાયપ્રદેશ કયારેક અદ્ધાસમચા વડે સ્પષ્ટ થાય છે અને કયારેક પૃષ્ટ થતા નથી. · કયારેક પૃષ્ટ થાય છે. એવુ જે થન કરવામાં આવ્યુ છે તે સમયક્ષેત્રની અપેક્ષાએ કરવામાં આવ્યા છે. "
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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