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________________ દરર भगवती सूत्रे " यस ' हे गौतम! जघन्यपदे - जघन्येन, त्रिभिः अस्तिकायमदेशैः, उत्कृष्टपदे - उत्कृष्टेन, पद्भिः अधर्मास्तिकायमदेशैः एकोऽधर्मास्तिकायमदेशः स्पृष्टो भवति, शेषं यथा धर्मास्तिकायस्य प्रतिपादितं तथैन अधर्मास्तिकायस्यापि प्रतिपत्तव्यम्, तथा च एकस्य अधर्मास्तिकाय प्रदेशस्य शेषाणामाकाशा स्विकायादीनां प्रदेशैः स्पर्शोहि पूर्वोक्तधर्मास्तिकाय प्रदेशस्पर्शानुसारेणैवावसेयः ६ गौतमः पृच्छति - एगे भंते! 'आगासत्यिकायपरसे के वह एहि धम्मत्थिकायप एसेहिं पुढे ?' हे भदन्त 1 एक खलु आकाशास्तिकाय प्रदेशः कियदभिः धर्मास्तिकायप्रदेश: स्पृष्टो भवति ? भगवानाह - गोयमा ! सिय पुढे सिय नो पुट्ठे, जड़ पुढे जहन्नपदे छहिं से जहा धम्मत्थिकाथस्स' हे गौतम! जघन्यरूप से वह अधमस्तिका का एक प्रदेश तीन अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से और उत्कृष्ट रूप से वह अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश ६ अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। बाकी का और सब कथन यहां पर धर्मास्तिकाय के विषय में जैसा किया गया है वैसा ही कर लेना चाहिये । तथा च- अधर्मास्तिकाय के एकप्रदेश का शेष आकाशास्तिकायादिकों के प्रदेशों से स्पर्श पूर्वोक्त एक धर्मास्तिकाय प्रदेश स्पर्श के अनुसार ही जानना चाहिये । ६ । अम गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'एगे भंते! आगासत्यिकापपए से केवहएहिं धम्मस्थिकापसेहिं पुढे' हे भदन्त ! आकाशास्तिकाय का एकप्रदेश धर्मा.स्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? इसके उत्तर में प्रभु भडावीर अलुना उत्तर- " जहन्नपए तिहि, उक्कोसपर छहि, सेसं जहा धम्मस्थिका " हे गौतम! अधर्मास्तिडायनो मे अहेश मोछामां भेोछा ત્રણ અને વધારેમાં વધારે છ અધર્માસ્તિકાય પ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે બાકીનુ સમસ્ત કથન ધર્માસ્તિકાયના વિષયમાં ઉપર કરેલા કથન અનુસાર સમજવું એટલે કે અધર્માસ્તિયકાયના એક પ્રદેશના આકાશાસ્તિકાય આદિના પ્રદેશા દ્વારા સ્પર્શ પૂર્વોક્ત એક ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશના સ્પર્શ અનુસાર જ સમજવા જોઈ એ. રા गौतम स्वाभीना अश्न - " एगे भवे ! आगासत्थिकायपए से केवइएहि ' धम्मत्थिकापसेहिं पुढे १" हे भगवन् ! आमशास्तिडायना सेठ अद्देश ધર્માસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશા વડે પૃષ્ટ થાય છે ?
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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