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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १२ उ१४ सू०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् एगयओ परमाणु गोग्गले, एगयओ छप्पएसिए खंधे भवई' द्विधा क्रियमाणः एकत:-एकभागे परमाणुपुद्गलो भाति, एकता-अपरभागे पदप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ, अथवा एकत:-एकभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकता-अपरे भागे पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ विप्पएंसिए, एगयभो चउप्पएसिएं खंघे भवई' अथवा एकता-एकभागे त्रिपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकता-अपरभागे चतुष्पदेशिका स्कन्धो भवति, 'तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवई' सनप्रदेशिकः स्कन्धस्त्रिधा क्रियमाणः, एकत:एकभागे द्वो परमाणुपुदली भरता एकत:-अपरमागे पश्चपदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगया परमाणुपोग्गले, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयो चउप्पएसिए खंधे भवई' अथवा एकातः-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः अपरविभाग हो सकते हैं-'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ छप्पएसिए खधे भवइ' जब इसके दो विभाग किये जाते हैंतब एक विभोग में परमाणुपुद्गल होता है और दूसरे भाग में षट्प्रदे शिक स्कंध होता है 'अहवा एगयो दुप्पएसिए स्कंधे भवह एगयी पंचपएसिए खंधे भवई' अथवा-एक विभाग में द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता है और दूसरे विभाग में पंचप्रदेशिक स्कन्ध होता है ! "अहवा एगयओ तिप्पएसिए, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भव" अथवा-एक विभाग में त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है और दूसरे विभाग में चतुष्पदेशिक स्कंध होता है, 'तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयो पंच पएसिए खंधे भवइ' जब इस सप्तप्रदेशिक स्कन्ध के तीन विभाग किये जाते हैं-तच एकभाग में दो परमाणु पुदल होते हैं और एकभाग में पंचप्रदेशिक स्कंध होता है.। 'अहवा-एगयओ परमाणुपोगले, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयो चउप्पएसिए खंधे भवह' सात विना था शछ “दुहा कन्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ छप्पएसिए खंधे भव" न्यारे तन मे विमा ४२वामा मात्र छ, ત્યારે એક વિભાગમાં એક પરમાણુપુદ્ગલ હોય છે અને બીજા વિભાગમાં છે प्रशि२४५ डाय छे. “ अहवा- एगयो दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयओ पंच पएसिए खंघे भवइ" अथवा विभागमा द्विपशि २४ाय छ भने भीon GAIमां पयशिर २४ डाय छ “अहवा-एगयो तिप्पएसिए, एगयो चउप्पएसिए खंधे भवइ" अथवा मे विलापमा हिशि: २४ હોય છે અને બીજા વિભાગમાં ચાર પ્રદેશિક સ્કંધ હોય છે. ___ “तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ पंच पएसिए खंधे भवइ" न्यारे सहशि: २४ घना ऋण विमा ४२वाम भाव છે, ત્યારે એક પરમાણુ પ્રદુમલ રૂપ એક વિભાગ, એક પરમાણુ યુદલ રૂમ भी विHIT सन पयशि २४३३५ त्रीले विलास थाय छ. " अहवापंगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए खंघे, एगयओ चप्पएसिए खंधे भवई
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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