SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० २ सू० १ देवविशेपनिरूपणम् ५४३ इत्याह-'पण्णत्तेसु य न भण्णंति' प्रज्ञप्तेषु-प्रज्ञप्तपदोपललक्षित सत्ताविषयक गमके च सीवेदका न भण्यन्ते, सनत्कुमारादिषु देवीनां सत्ताया अभावात् किन्तु तत्र सनत्कुमारादियु, अवतनदेवलोकादेवीनां गमनसंभवात् तत्रतो देवीनामुद्वर्तन कदाचिद्भवतीति उद्वर्तना न निषिद्धति भावः । 'असन्नी तिमु वि गमएमु न भणति, सेसं तं चेत्र' असंशिनः सनत्कुमारावासेषु विष्वपि गमकेषु-उत्पादो-दर्तनासत्ता विषयकेषु आलापकेषु न मण्यन्ते । सनत्कुमारादिदेवानां संज्ञिभ्य एवोत्पादसद्भावेन च्युतानां च संज्ञिप्वेव गमनेन, गमकत्रयेऽपि असंज्ञित्वस्यामद्धावाद , हैं । अर्थात् देवियां यहां उत्पन्न नहीं होता है, क्योंकि देवियों का उत्पाद-दो देवलोक तक-सौधर्म ईशान देवलोक तक ही-कहा गया है। आगे के सनत्कुमारादि देवलोकों में नहीं | अतः जब इनका यहां उत्पाद ही नहीं है तब 'पणत्तेमु य न भणनि' प्रज्ञप्तपदोपलक्षिन-सत्ताविषयक गमकों में स्त्रीवेदी नहीं कहे गये हैं। क्योंकि सनत्कुमारादिकों में देवियों का सत्ता में अभाव कहा गया है, सनत्कुमादिकों में जो देवियां आती हैं वे अधस्तनदेवलोक से ही आती हैं । अतः वहां से कदाचित् देवियों की उद्वर्तना होती है-इसीलिये उद्वर्त्तना का निषेध यहां नहीं किया गया है। असन्नी तिसु वि गमएस्तु न भणति, सेसं तं चेव' असंही जीव सनत्कुमारावासों के तीनों भी उत्पाद, उद्वत्तना, और सत्ताविषयक आलापकों में नहीं कहे गये हैं। क्योंकि सनत्कुमादि देवों का उत्पाद संज्ञी जीवों में से ही होता है और जब ये वहां से चवित होते हैं-तब એને ઉત્પાદ કહ્યો નથી. આ રીતે સનકુમાર દેવલોકમાં દેવીઓની ઉત્પત્તિ ४ यती नापाथी, " पण्णत्तेसु य न भणति" प्रसपलक्षित साविषय આલાપમાં પણ સ્ત્રીવેદીને અભાવ જ કહ્યો છે, કારણ કે સનસ્કુમારાદિક દેવકેમાં દેવીઓની વિદ્યમાનતાને જ અભાવ કહ્યો છે. સનસ્કુમારાદિકમાં જે દેવીઓ આવે છે, તેઓ અધસ્તન (નીચેના) દેવકમાંથી જ આવે છે. તેથી ત્યાં ક્યારેક દેવીઓની ઉદ્વર્તન થાય છે, તેથી અહીંયા દેવીઓની नाना निषेध हो नथी. " असन्नी तिमुवि गमएसु न भण्णंत्ति, सेसं तंचेव" सभासपासना . मालापमा ससशी ७वानु ४थन २ જોઈએ નહીં, કારણ કે ત્યાં અસંજ્ઞી જીવો ઉત્પન્ન થતા નથી, ત્યાંથી અસંશી છિની ઉદ્ધત્તના થતી નથી અને ત્યાં અસંજ્ઞી જી હતા પણ નથી, કારણ કે સનસ્કુમારાદિ દેવને ઉત્પાદ સંજ્ઞી માંથી જ થાય છે અને ત્યાંથી ચ્યવીને તેઓ સંસી માં જ ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી ત્રણે આલા
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy