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________________ - . ५३८ भगवतीसूत्रे ज्योतिष्के संख्येयविस्तृता एव विमानावासाः प्रतिपत्तव्याः, किन्तु नवरं-पूर्वापेक्षया विशेपस्त्वत्र एका तेजोलेश्यैव वक्तव्या, वानव्यन्तरे तु लेश्याचतुष्टयमुक्तम् , तथा उत्पद्यन्तेषु-उत्पद्यन्ते पदोपलक्षितेषु वानव्यन्तरेषु असंज्ञिनः उत्पधाते इन्युक्त मातु तन्निधो बोध्यः, तथा च ज्योतिप्केपु असंज्ञिनो नोत्पबन्ते, एवं प्रज्ञप्तेपु-प्रज्ञप्तपदोपलक्षितेषु सत्ताविषयकेषु चात्र असंझिनो न सन्ति, उत्पादाभावात् इति भावः। शेषं तदेव-पूर्वोक्तवानव्यन्तरात्रामवदेव ज्योतिष्कावासेऽपि वोध्यम् । गौतमः पृच्छति-'सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावाससयसहस्सा पणत्ता ?' हे भदन्त ! सौधर्मे खलु कल्पे कियन्ति विमानावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? भगवानाइ-'गोयमा! वत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा सत्ताविषयक तीन आलापक कहना चाहिये । तथा च 'एगलटिभागं काऊण जोयणं' इत्यादि प्रमाण से ज्योतिष्क में संख्यातयोजनविस्तारवाले ही विमानायास जानना चाहिये । किन्तु पूर्वकथन की अपेक्षा इस कथन में यदि कोई विशेषता है तो वह ऐसी है कि यहां पर केवल एक तेजोलेश्या ही है, वानव्यन्तरो में चार लेश्याएँ हैं। तथा उत्पाद पदोपलक्षितवानव्धन्तरों में असंज्ञी उत्पन्नहोते कहेगये हैं, यहां पर उनका निषेध कियागया है। अर्थात् ज्योतिषिकों में असंज्ञी उत्पन्न नहीं होते हैं। इसी प्रकार प्रज्ञसपदोपलक्षित इन ज्योतिषकों में असंज्ञी जीव नहीं है क्योंकि इनका यहां उत्पाद ही नहीं होता है। बाकी का और सब कथन यहां पूर्वोक्तवानव्यन्नरावास की तरह से ही जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'लोहम्मे णं भंते ! कप्पे कैवइया विमाणावासस. यसहस्सा पण्णत्ता' हे भदन्त ! सौधर्मकल्प में-कितने लाख विमाना " एगसद्रिभागं काऊण जोयणं" त्याहि ४थन अनुसार ज्यातिषीना વિમાનાવાસે સંખ્યાત એજનના વિસ્તારવાળા જ સમજવા વાનવ્યક્તોના કથન કરતાં અહી એટલી જ વિશેષતા છે કે વાન વ્યસ્તરોમાં ચાર લેશ્યાઓ હોય છે, પરંતુ જ્યોતિષિકેમાં માત્ર તેજોલેશ્યાને જ સદ્ભાવ હોય છે. વળી વાનવ્યન્તરમાં અસંજ્ઞી ઉત્પન્ન થાય છે, પરંતુ જ્યોતિષિકેમાં અસંજ્ઞીને ઉત્પાદ કહ્યો નથી બાકીનું સમસ્ત કથન વાનરેના જેવું જ સમજવું. गौतम स्वामीना प्रश्न-" सोहम्मेणं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता" भगवन् ! साधम पलामinam विभानावास छाछे ? __महावीर प्रभुना उत्तर-“गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता" હે ગૌતમ! સૌધર્મ કલ્પમાં ૩૨ લાખ વિમાનાવાસ કહ્યા છે,
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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