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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०१ सू०६ रत्नप्रभायां नैरयिकोत्पत्यादिनि. ५०५ रविरहिताः सन्ति, किन्तु सम्यमिथ्यादृष्टिभिरयिकैरविरहिता:-युक्ताः सन्ति, विरहिता:-शून्या वा सन्ति, तेषां कादाचित्कत्वेन विरहसंभवात् । 'एवं असंखेज्जवित्थडेसु तिन्नि गमगा भाणियन्या' एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव, असंख्येयविस्तृतेष्वपि नरकेपु त्रीणि गमकानि-उत्पादो-द्वर्तना-सत्ता विषयकानयोऽभिलापकरूपाः भणितव्या:-वक्तव्याः। एवं सकरप्पभाए वि, एवं जाव तमाए वि' एवं-पूर्वोक्तवदेव, शर्करामभायामपि पृथिव्यां त्रयोऽभिलापका:-- उत्पादोद्वर्तना-सत्ता विषयका वक्तव्याः, एवं-तथैव यावत्-चालुकाप्रभायां, पङ्कप्रभायां, धूममभायां, तमःप्रभायामपि उत्पादो-द्वर्तना-सत्ता विषयकाः पूर्वोक्ताखयोऽमिलापका वक्तव्याः। गौतमः पृच्छति-'अहे सत्तमाए णं भंते ! पुढवीए पंचसु अविरहित-सहित हैं, मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से भी सहित हैं। परन्तु जो सम्पमिथ्यादृष्टि नैरयिक हैं उनसे कदाचित् सहित भी हैं, क्यों कि ये कादाचिक होते हैं-इसलिये इनका विरह संभवता है। 'एवं असंखेजवित्थडेसु वि तिन्नि गमगा भाणियन्वा' इसी प्रकार पूर्वोक्तरीति के अनुसार असंख्यात विस्तारवाले भी नरकावासों में उत्पाद, उतना और सत्ताविषयक तीन अभिलापक कहना चाहिये 'एवं सकरप्पभाए वि एवं जाव तमाए वि' इसी प्रकार से शर्करामभा में भी उत्पाद, उतना और सत्ताविषयक तीन अभिलापक कहना चाहिये. तथा इसी प्रकार से यावत् वालुकाप्रभा में पंकप्रभा में, धूमप्रभा में तमः प्रभा में भी उत्पाद, उतना एवं सत्ता विषयक तीन अभिलापक कहना चाहिये। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अहे सत्तमाए णं' મિથ્યાષ્ટિ નારકેથી પણ યુક્ત હોય છે, પરંતુ કયારેક તે નરકાવાસે સમ્યમિથ્યાટિ નારકેથી અવિરહિત (યુક્ત) પણ હોય છે અને ક્યારેક વિરહિત (રહિત) પણ હોય છે, કારણ કે સમ્યગૃમિથ્યાષ્ટિઓને ત્યાં કાયમ સદુભાવ જ હોય છે એવું નથી, કયારેક સદુભાવ અને કયારેક અભાવે हावाने र तमना १२९ सवी श छे. “ एवं असंखेजवित्थडेसु वितिन्नि गमगा भाणियवा" यात योजना विस्तारा नवासाना જેવું જ કથન અસંખ્યાત એજનના વિસ્તારવાળા નરકાવાસોના સમ્યગ્દષ્ટિ, મિથ્યાદૃષ્ટિ અને મિશ્રદષ્ટિ નારકેના ઉત્પાદ, ઉદ્વર્તન અને વિદ્યમાનતાના विषयमा पY सभा. “ एवं सस्करप्पमाए वि, एवं जाव तमाए वि" मेर પ્રમાણુ શર્કરામભા પૃથ્વીમાં પણ ઉત્પાદ, ઉધના અને વિદ્યમાનતાના વિષયમાં ત્રણ આલાપકેનું કથન કરવું જોઈએ એજ પ્રકાર વાલુકાપ્રભા, म०६४
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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