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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श०१३ उ० १ सू०५ शर्कराप्रभादिपु निरयावासादिनि. ४९५ स्तीर्थङ्करतया नोत्पद्यन्ते इति भावः। शेपं तदेव-पूर्वोक्तवदेव बोध्यम् । अत्र पङ्क: प्रभायामेका नीललेश्या वर्तते । __'धूमप्पभाए णं पुच्छा' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! धूमप्रमायां खलु पृथिव्यां कियन्ति निरयावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? इति पृच्छा, भगवानाह'गोयमा ! तिनि निरयावाससयसहस्सा, एवं जहा पंकप्पभाए' हे गौतम ! धूमपभायां त्रीणि निरयावासशतसहस्राणि-नरकावासलक्षाणि प्रजातानि, एवंतथैव, यथा पङ्कममायां प्रतिपादितं तया धूमप्रभायामपि प्रतिपादनीयम् , 'अत्र धूमप्रभायां नीलकृष्णेति लेश्याद्वयं वर्तते' - 'तमाए णं भंते ! पुढवीए केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णचा पुच्छा' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! तमायां खलु पृथिव्यां कियन्ति निरयावासशनसह. पृथिवी का निकला हुआ जीव तीर्थंकर रूप से उत्पन्न होता नहीं है पाकी का और सब कथन पूर्वोक्त जैसा ही है। यहां पंकप्रभा में एक नीललेश्या है । 'धूमपभाए णं पुच्छा' इस सूत्र बारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त । धूमप्रभा पृथिवी में कितने नरकावास कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-गोयना ! हे गौतम ! 'तिन्नि निरयावाससयसहस्सा, एवं जहा पंकप्पभाए ' धूमप्रभा पृथिवी में ३ लाख नरकावास कहे गये हैं। बाकी का और सब कथन यहां पर पंकप्रभा में कहे गये कथन के अनुसार ही जानना चाहिये। यहां धूमप्रभा में नीललेश्या और कृष्णलेश्या ये दो लेश्याएँ हैं । 'तमाए णं भंते ! पुढवीए केवहया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता पुच्छा?' गौतम ने इस सूत्रं द्वारा प्रभु से ऐसा पूछा है कि हे भदन्त ! तमा नाम की छठी पृथिवी રૂપે ઉત્પન્ન થતું નથી બાકીનું સમસ્ત કથન શર્કરપ્રભાના કથન જેવું જ છે. પંકપ્રભામાં માત્ર નીલલેશ્યાવાળા નારકા જ હોય છે. गौतम स्वाभान प्रश्न-"धूमप्पभाए गं पुच्छा” 8 स ! पांयमी ધમપ્રભા પૃથ્વીમાં કેટલા નરકાવાસા છે? महावीर प्रभुन। उत्तर-"गोयमा!" गौतम ! “तिन्नि निरयावाससयसहस्सा, एवं जहा पंकप्पभाए " धूमप्रक्षा श्वामा दाम न२३वास કહ્યા છે. બાકીનું સમસ્ત કથન અહીં પકપ્રભાના પૂર્વોકત કથન પ્રમાણે જ સમજવું ધૂમપ્રભામાં નીલલેશ્યા અને કૃષ્ણલેશ્યાવાળા નારકે જ હોય છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-" तमाए णं भंते ! पुढवीए केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता पुच्छा?" मगन ! तमामा नामनी ही पृथ्वीमा टा લાખ નરકાવાસો કહ્યા છે ?
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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