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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१३ उ०१ सू०३ रत्नप्रभापृथिव्यां नरकावासादिनि. ४८१ ग्रहसंज्ञोपयुक्ताः, प्रज्ञप्ताः, 'इस्थिवेयगा नत्थि, पुरिसवेयगा नत्थि, संखेज्जा नपुंसगवेयगा पप्णत्ता, स्त्रीवेदका न सन्ति, पुरुषवेदका न सन्ति, किन्तु नपुंसकवेदकाः प्रज्ञप्ताः, ‘एवं कोहकसाई वि, माणकसाई जहा असन्नी, एवं जहा लोभकसाई' एवं तथैव क्रोधकपायिणोऽपि संख्येयाः प्रज्ञप्ताः, मानकपायिणो यथा असंज्ञिनः स्यात् सन्ति, स्यात् न सन्ति इति प्रतिपादिता स्तथा प्रतिपत्तव्याः, एवं-तथैव, यावत् संख्येया मानकपायिणः संख्येयाः मायाकपायिणः, संख्येयाः लोभकपापिणः पज्ञप्ता, 'संखेज्ना सो इंदियोवउत्ता पण्णता, एवं जाव फासिदियोवउत्ता नो इंदियोवउत्चा जहा असनी' संख्येयाः श्रोत्रेन्दियोपयुक्ताः प्रज्ञप्ताः, एवं-तथैव, यावत्-संख्येयाश्चक्षुरिन्द्रियो. पयुक्ताः, संख्ये या घ्राणेन्द्रियोपयुक्ताः, संख्ये या रसनेन्द्रियोपयुक्ताः, संख्येयाः पयुक्त ये सब वहां संख्यात संख्यात ही कहे गये हैं 'इथिवेयगा नस्थि, पुरिसवेयगा नत्थि, संखेज्जा नपुंनगवेयगा पण्णत्ता' स्त्रीवेदक पुरुषवेदक वहां नहीं होते हैं किन्तु नपुंसकवेदक ही वहां होते हैं 'एवं कोहकसाई वि, माणकसाई जहा असन्नी, एवं जहा लोभकसाई क्रोधकपायी भी यहां संख्यात ही होते हैं असंज्ञी जैसे वहां होते भी हैं और नहीं भी होते हैं ऐसा कहा गया है, उसी प्रकार से मानकषायी भी वहां प्रतिपादित हुए हैं। ये यहां संख्यात कहे गये हैं, मायाफपायी भी वहां संख्यात कहे गये हैं और लोभकषायी भी संख्यात ही कहे गये हैं। 'संखेज्जा सोइंदियोवउत्ता पण्णत्ता, एवं जाव फासिदियोवउत्ता, नो इंन्दियोवउत्ता जहा असन्नी' श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्त भी वहां संख्यात ही कहे गये हैं, इसी प्रकार चक्षुइन्द्रियोपयुक्त भी संख्यात, घ्राणेन्द्रियोपમૈથુનસરૂપયુકત અને પરિગ્રહસરૂપયુકત નારકે પણ ત્યાં સ‘ખ્યાત, सध्यातरी ह्या छ. “ इथिवेयगा नत्थि, पुरिसवेयगा नस्थि, संखेज्जा नपुंसगवेयगा पण्णत्ता" त्या व नथी, पुरुष पक्ष नथी, परन्तु ज्यात नस हाय छे. "एवं कोहकसाई वि, माणकसाई जहा असन्नी, एवं जहा लोभकसाई " या अपपायी ना२। सभ्यात डाय छ, अशी નારકની જેમ માનકષાયી નારકે ત્યાં હોય છે પણ ખરાં અને નથી પણ હતા જે માનકવાયી નારકેને ત્યાં સદ્ભાવ હોય તે તેઓ ત્યાં સંખ્યાત હોય છે, એ જ પ્રમાણે ત્યાં માયાકષાયી નારકે પણ સંખ્યાત જ કહ્યા છે भने सोमपायी ना। ५ सयात छ. "संखेज्जा सोइंदियोवउत्ता पण्णत्ता, एवं जाव फासिदियोवउत्ता, नोइंदियोवउत्ता जहा असन्नी" श्रोत्रन्द्रि ચાપયુકત નારકે પણ ત્યાં સંખ્યાત જ કહ્યા છે, એ જ પ્રમાણે ચક્ષુઈન્દ્રિયાપ भ०६१
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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