SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८० भगवतीसूत्रे असंज्ञिनो यदि सन्ति ते जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येयाः प्रज्ञप्ताः, 'असंज्ञिभ्य उदृत्य ये नैरपिकत्वेनोत्पन्नास्ते अपर्याप्तकावस्थायाम्संज्ञिनः भूतपूर्वत्वात् , ते वाल्पा एव सन्ति इत्यभिप्रायेण 'सिय अत्थि' इत्याद्युक्तम्, 'संखेज्जा भवसिद्धिया पणत्ता, एवं जाव संज्जा परिगहनोवउत्ता पण्णत्ता' संख्येयाः भवसिद्धिकाः प्रज्ञप्ताः, एवं तथैव, यावत्-संख्येयाः अभवसिद्धिका:, संख्येयाः आभिवोधिकज्ञानिना, संख्येयाः, श्रुज्ञानिना, संख्येयाः अवधिज्ञानिना, संख्याः मत्यज्ञानिनः, संख्पेयाः श्रुनाज्ञानिना, संख्येया विभङ्गज्ञानिनः, संख्ये. याश्चक्षुर्दर्शनिना, संख्येयाः अचक्षुर्दर्शनिनः, संख्येया अवधिज्ञानिनः, संख्येया आहारसंज्ञोपयुक्ताः, संख्येया भयसंज्ञोपयुक्ताः, संख्येयाः मैथुनसंज्ञोपयुक्ताः, परि. वा, उक्कोलेणं संखेज्जा पण्णत्ता' यदि होते हैं तो वे कम से कम या तो एक या दो या तीन होते हैं और ज्यादा से ज्यादा संख्यात होते हैं। असंज्ञियों में से मरकर जो नैरपिकल्प से उत्पन्न होते हैं, वे अपर्यासक अवस्था में भूतपूर्व की अपेक्षा, से अज्ञी कहे गए हैं, ऐसे जीव अल्प ही होते हैं इसी अभिप्राय को लेकर; "सिय अस्थि" आदि सूत्र कहा गया है। 'संखेज्जा भवसिद्धिया पण्णत्ता' भवसिद्धिक वहां संख्यात कहे गये हैं यावत् अभवसिद्धिक भी संख्यात ही कहे गये हैं आभिनियोधिकज्ञानी भी संख्यात ही कहे गये हैं, श्रुतज्ञानी भी संख्यात ही कहे गये हैं, अवधिज्ञानी भी संख्यात ही कहे गये हैं, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, विभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी, अवधिदर्शनी, आहारसंज्ञोपयुक्त, भयसंज्ञोपयुक्त, मैथुनसंज्ञोपयुक्त और परिग्रह संज्ञो या२४ नथी डोता. "जइ अस्थि जहण्णेणं एक्कोवा, दोवा, तिन्नि वा, उनकोसेणं संखेज्जा पण्णत्ता" असशी नारत्यो य छ, तो माछामां ઓછા એક, બે અથવા ત્રણ હોય છે અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત હોય છે અસંઓમાંથી મરીને જેઓ નારક રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે, તેમને અપ તક અવસ્થામાં ભૂતપૂર્વની અપેક્ષાએ અસંજ્ઞી કહ્યા છે; એવાં અલ્પ हाय छे, तथा "सिय अस्थि सिय नस्थि " 0 २ ४थन ४२वामा भाव्यु छ. ' संखेज्जा भवसिद्धिया पण्णत्ता" त्या सध्यात सिद्धि નારકે કહ્યા છે અને અભાવસિદ્ધિક પણ સંખ્યાત જ કહ્યા છે, આમિનિબેધિક જ્ઞાની પણ સંખ્યાત જ કહ્યા છે, શ્રુતજ્ઞાની, પણ સંખ્યાત જ કહ્યા છે, અવધિજ્ઞાની પણ સંખ્યાત જ કહ્યા છે, મત્યજ્ઞાની, શ્રુતજ્ઞાની, વિભળજ્ઞાની, ચક્ષુર્દશની, અચક્ષુર્દર્શની, અવધિદંશની, આહારસાપયુકત, ભયસંપયુકત,
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy