SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 496
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीको श० १३ उ०१ सू०३ रत्नप्रभापृथिव्यां नरकावासादिनि. ४७६ इया पण्णता? केवइया काउलेस्ला जाव केवइया अणागारोवउत्ता पण्णता? केवइया अणंतरोववन्नगा पण्णता ? केवइया परंपरोववन्नगा पणत्तार ? केवइया अणं तरोवगाढा पण्णता३? केवइया परंपरोवगाढा पण्णता? केवइया अणंतराहारा पण्णत्ता५? केवइया परंपराहारा पण्णत्ता६? केवइया अणंतरपज्जत्ता पण्णत्ता७? केवइया परंपरपज्जत्ता पण्णता ८? केवइया चरिमा पण्णत्ता९? केवइया अचरिमा पण्णत्ता१०? गोयमा! इमीले रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावासलयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु संखेज्जा नेरइया पण्णता, संखेज्जा काउलेस्सा पण्णता, एवं जाव संखेज्जा सन्नी पपणत्ता, असन्नी लिय अस्थि, सिय नस्थि, जइ अस्थि जहणणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा पण्णत्ता, संखेज्जा भवसिद्धिया पण्णता, एवं जाव संखेज्जा परिग्गहसन्नोवउत्ता पण्णचा, इथिवेयगा नस्थि, पुरिसवेयगा नस्थि, संखेज्जा नपुंसगवेयगा पपणत्ता, एवं कोहकसायी वि, माणकसाई जहा असन्नी, एवं जाव लोभकसाई षण्णत्ता, संखेज्जा सोइंदियों वउत्ता पण्णता, एवं जाव फासिदियोवउत्ता, नो इंदियोवउत्ता जहा असन्नी, संखेज्जा मणजोगी पण्णत्ता, एवं जाव अणागारोवउत्ता, अणंतरोववन्नगा सिय अस्थि, सिय नस्थि, जइ अस्थि जहा असन्नी, संखेज्जा परंपरोववन्नगा पण्णत्ता, एवं जहा अणं. तरोववन्नगा तहा अणंतरोगाढगा, अणंतराहारगा अणंतरपजतगा, परंपरोवगाढगाजाव अचरिमा जहा परंपरोववन्नगा।सू०३।। छाया-अस्याः खलु भदन्त ! रत्नप्रभायां पृथिव्यां विंशति निरयावासशतसहस्रेषु संख्येयविस्तृतेषु नरकेषु कियन्तो नैरयिकाः प्रज्ञप्ता: फियन्तः कापोतलेश्या यावत् कियन्तः अनाकारोपयुक्ताः प्रज्ञता ? कियन्तः अनन्तरोपपनकाल मज्ञप्ता:१? कियन्तः परम्परोपपन्नकाः प्रज्ञताः२ ? कियन्तः अनन्तरावगादार
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy