SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० १ सू० १ पृथिव्यादिनिरूपणम् ४७३ 'जहण्णेणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेपं संखेज्जा अचक्खुदसणी उन्ध सृति' जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येयाः अवक्षुदर्शनिन - उद्वर्तन्ते 'एवं जाव लोभकसायी' एवं तथैव, यावत्-अवधिदर्शनिनः आहारसंज्ञोपयुक्ताः, भयसंज्ञोपयुक्ताा, मैथुनसंज्ञोपयुक्ताः, परिग्रहसंज्ञोपयुक्ताः, स्त्रीवेदकाः, पुरुषवेदकाः, नपुंसकवेदकाः, क्रोधकषायिणः, मानकपायिणः, मायाकपायिणः, लोभकषायिणो जघन्येन एको बा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येयाः उद्वर्तन्ते, 'सोइंदियोवउत्ता ण उव्वदंति, एवं जाव फासिदियोवउत्ता न उच्चभ्रुति' श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्ता स्तत्र नोद्वर्तन्ते, एवं-तथैव यावत्चक्षुरिन्द्रियोपयुक्ताः, प्राणेन्द्रियोएयुक्ताः, रसनेन्द्रियोपयुक्ताः, स्पर्शनेन्द्रियोपयुक्ता नोद्वर्तन्ते इन्द्रियाणि मुक्त्वैव उद्वर्तनसभावात , 'जहण्णेणं एको वा, दो वा, सेणं संखेज्जा अचखुदसणी उव्वदंति' जघन्य से एक, दो, या तीन और उत्कृष्ट ले संख्यात अचक्षुर्दर्शनी उबलना करते हैं 'एवं जाव लोभकसायी' इसी प्रकार से यावत्-अवधिदर्शनी' आहारसंज्ञोपयुक्त, भयसंज्ञोपयुक्त, मैथुनसंज्ञोपयुक्त, परिग्रहसंज्ञोपयुक्त, स्त्रीवेदक, पुरुषबेदक, नपुंसकवेदक, क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी नारक जघन्य से एक, दो या तीन और उत्कृष्ट से संख्यात वहां से उतना करते हैं, 'सोइंदियोवउत्ता ण उव्वद्वति, एवं जाव फासिंदियोवउत्ता न उव्वद्वति' इसी प्रकार से श्रोनेन्द्रियोपयुक्त, वहाँ पर उतना नहीं करते हैं, चाइन्द्रियोयुक्त, घ्राणेन्द्रियोपयुक्त, रसनेन्द्रियोपयुक्त, स्पर्शनेन्द्रियोपयुक्त उछलना नहीं करते हैं, क्योंकि इन्द्रियोंको छोड़ कर ही उतना का सद्भाव कहा गया है। 'जहण्णेणं एको वा, ___जहण्णेण एक्कोवा, दोवा, तिन्निवा, उक्कोसेण संखेज्जा अचक्खुदसणी વતિ” ઓછામાં ઓછા એક, બે અથવા ત્રણ અને વધારેમાં વધારે सभ्यात अध्यक्षुशनी ना त्यांची सत्ता ४२ छे. एवं जाव लोभकसायी" એજ પ્રમાણે અવધિદશની, આહારોપયુકત, ભયસજ્ઞોપયુકત, મૈથુનોપયુક્ત, પરિશહેસાયુકત, સ્ત્રીવેદક, પુરુષવેદક, નપુંસકવેદક, ક્રોધકષાયી, માનકષાયી, માયાઠષાયી અને લાભકષાયી નારકે પણ ત્યાંથી એક સમયમાં ઓછામાં ઓછા એક, બે અથવા ત્રણ નીકળે છે અને વધારેમાં વધારે सभ्यात ५ नाणे छे. "सोइंदियोवउत्ताण उव्वटुंति, एवं जाव फासिदियो वउत्ता न उव्वटुंति" श्रीन्द्रियापयुश्त ना त्यांथी द्वन ४२ता नथी ચક્ષુઈન્દ્રિય પયુક્ત, ઘાણેન્દ્રિપયુક્ત, રસનેન્દ્રિયોપયુકત, અને સ્પર્શેન્દ્રિય પયુકત નારકે પણ ત્યાથી ઉદ્વર્તન કરતા નથી, કારણ કે ઈન્દ્રિયાને છોડીને भ० १०
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy