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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ उ०४ सू०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ____२७ भवति, से भिज्जमाणे दुहावि, तिहावि, चउहावि कज्जइ स चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भिधमानः पृथग्र भरन् द्विधा पि, त्रिधा पि. चतुर्धा पि क्रियते-भवति, तत्र 'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ' द्विधा क्रियमाणः, एकत:-एकमागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकता-अपरभागे त्रिपदेशिका स्कन्धो भवति, 'अहवा दो दुप्परमिया खंधा भवंति' अहवा चतुष्पदेशिका स्कन्धो द्विधाक्रियमाणः द्वौ द्विप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयो दुप्पएसिए खंधे भवइ' चतुष्पदेशिकः स्कन्धः निधा होता है । अर्थात्-चार पुद्गल परमाणुओं के मिलाप से जोस्कन्ध उत्पन्नहोता है उसका नाम चतुष्पदेशिक स्कन्ध है-'से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि चउहाधि कज्जइ ' यह चतुष्प्रदेशिक स्कंध जब अपनी इस स्कन्ध अवस्था में पृथक् होने लगता है-तष इसके दो टुकड़े भी हो सकते हैं, तीन टुकड़े भी हो सकते हैं और चार टुकड़े भी हो सकते हैं-'दुहा फज्जमाणे एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भव' जब इसके दो टुकड़े होते हैं तो वे इस प्रकार से होते हैंएक भाग में एक परमाणुपुद्गल होता है और दूसरे भाग में निप्रदेशिक स्कन्ध होता है । ' अहवा-दो दुप्पएलिया, खंधा भवंति ' अथवा दो विभाग दो दो प्रदेशों के भी होते हैं। अर्थात्-एक विभाग विप्रदेशी स्कन्धका और दूसरा विभाग भी. द्विप्रदेशी स्कन्ध का हो जाता है। 'तिहा कज्जमाणे एगयो दो परमाणुपोग्गला, एगयो दुप्पएसिएं એટલે કે ચાર પુદ્રાપરમાણુઓના સાગથી જે કંધ બને છે તેનું नाम यतु शिर २४ थाय छे. “से भिन्जमाणे दुहा वि, तिहावि, चहा वि कज्जइ" या मा यतुशि : पातानी मा भवस्थानी. त्यास કરીને વિભક્ત થઈ જાય છે, ત્યારે તેના બે વિભાગ પણ પડી શકે છે, ત્રણ विमा ५] ५६ छ भने या२ nि पर ही ले “ दुहा कन्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भव" न्यारे તેના બે વિભાગ થાય છે, ત્યારે તેના એક ભાગમાં એક પરમાપુદ્ગલ હોય छ भने मीना मागभा मे निशि : २४५डाय छे. "अहवा-दोपएसिया खंधा भवंति" अथवा विशि : २७°ध ३५ मे विमा ५ ५ श छे. એટલે કે એક વિભાગ દ્વિપ્રશિક ઔધ રૂપ અને બીજો વિભાગ પણ દ્વિદેશિક સ્કધરૂપ જ હોય છે. ___“विहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे મા” જ્યારે ચતુષ્પદેશિક કંધને ત્રણ વિભાગમાં વિભક્ત કરવામાં આવે
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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