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________________ भगवतीसूबे केचन क्षपितसर्वकर्माणः धर्मदेवाः सिध्यन्ति, यावत्-युध्यन्ते, मुच्यन्ते, परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति च । गौतमः पृच्छति-'देवाहिदेवा अणंतरं उव्यट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उज्जति ? ' हे भदन्त ! देवाधिदेवास्तीर्यवरा अर्हन्तः, अनन्तरम्-तीर्थङ्करभवानन्तरम्, उद्धृत्य, कुत्र गच्छन्ति ? कुत्रोपपद्यन्ते ? भगवानाह-गोयमा ! सिझंति, जाव अंतं करेंति' हे गौतम ! देवाधिदेवास्तीर्थइरा उद्वर्तनानन्तरं सिध्यन्ति, यावत्-युध्यन्ते, मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति च । गौतमः पृच्छति-भावदेवा णं भंते ! अणंतर उध्वहिता पुच्छा' हे भदन्त ! भावदेवाः खलु, अनन्तरम्-भावदेवभवाननन्तरम् , उवृत्त्य, में कितनेक धर्मदेव ऐसे भी होते हैं कि जो क्षपितसर्वकर्मा होकर सिद्ध हो जाते हैं, यावत्-वुद्ध हो जाते हैं, संसार से सर्वथा छूट जाते हैं, शीतीभूत हो जाते हैं, और समस्त दुखों के अन्तकर्ता हो जाते हैं। ___अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'देवाहिदेवा अणंतरं उध्वहिला कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जति' हे भदन्त ! देवाधिदेव-तीर्थ- - कर अहंत-तीर्थंकर भव को छोड़कर कहां जाते हैं ? कहां उत्पन्न होते हैं? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! सिझंति, जाय अंतं करेंति' हे गौतम | देवाधिदेव तीर्थंकर उवर्तन के बाद सिद्ध हो जाते हैं, मुक्त हो जाते हैं, शीतीभूत हो जाते हैं और समस्तदुःखों के अन्तकर्ता वन जाते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'भावदेवाणं भंते ! अणंसरं उवहिता पुच्छा' हे भदन्त ! भावदेव भावदेवभव को छोड़ने के તે ધર્મમાં કેટલાક ધર્મદેવે એવા પણ હોય છે કે જેઓ સમસ્ત કર્મોને ક્ષય કરીને સિદ્ધ, બુદ્ધ, મુકત, શીતલીભૂત અને સમસ્ત દુખે અંતર્તા પણ થઈ જાય છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-“देवाहिदेवा अणंतरं उव्वद्विता कहिं गच्छंति, कहि उबवज्जति" मगवन् ! हेवाधिव (तीय ४२ मत) तीर्थ ४२ सपने છોડીને કયાં જાય છે? કયાં ઉત્પન્ન થાય છે? मडावीर असुन उत्तर-“गोयमा ! सिझंति, जाव अंतं करें ति" है ગૌતમ! દેવાધિદેવ (તીર્થંકર અહંત) તીર્થકર ભવ પૂરે કરીને સિદ્ધ થઈ જાય છે, બુદ્ધ થઈ જાય છે મુકત થઈ જાય છે શીતલીભૂત થઈ જાય છે અને સમસ્ત દુઃખના અંતકર્તા બની જાય છે. गौतम स्वाभान प्रश्न-"भावदेवा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता पुच्छा" ભગવન! ભાવ, તેમના ભાવદેવ સંબંધી ભવને છેડીને તે ભવની આયુ સ્થિતિ પૂરી કરીને) કયાં જાય છે ? કયાં ઉત્પન્ન થાય છે?
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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