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________________ ‘३२६ भगवतीसूत्रे पाणि विकुर्वन्तः, एकेन्द्रियरूपाणि वा, यावत्-द्वीन्द्रियरूपाणि वा त्रीन्द्रियरूपाणि 'वा, चतुरिन्द्रियरूपाणि वा, पञ्चेन्द्रियरूपाणि वा, विकुर्वन्ति, 'ताई संखेज्जाणिवा, असंखेज्जाणिवा, संबद्धाणि वा असंबद्धाणिवा, सरिसाणि वा, असरिसाणि वा, fair aानि - अनेकरूपाणि संख्येयानि वा असंख्येयानि वा, सम्बद्धानि वा, आत्मना सह सम्बद्धानि पुद्गलरूपाणि, असंबद्धानि वा असम्बद्धानि दूरस्थितानि वा पुलद्रव्याणि सदृशानि वा, समानवर्णादियुक्तानि, असदृशानि वा - असमानवर्णादियुक्तानि वा विकुर्वन्ति, 'विउन्त्रित्ता', तओ पच्छा अप्पणो अदिच्छियाई कज्जाई करेंति' विकुर्वित्या, ततः पश्चात् आत्मनो यथेच्छानि - इच्छानुसाराणि कार्याणि , और जब वे अपनी विकुर्वणाशक्ति द्वारा अनेक रूपों की विकुर्वणा करते हैं - तब वे रूप अनेक एकेन्द्रिय जीवों के भी हो सकते हैं, अनेक दो इन्द्रिय जीवों के भी हो सकते हैं, अनेक ते इन्द्रिय जीवों के भी हो सकते हैं, अनेक चौइन्द्रिय जीवों के भी हो सकते हैं और अनेक पंचेन्द्रिय जी के भी हो सकते हैं। ये सब संख्या में 'संखेज्जाणि वा, असंखेजाणिवा, संबद्वाणि वा असंबद्धाणि वा, सरिसाणि वा, असरिसाणि वा विश्ववंति' विकुर्वित हुए रूप संख्यात भी हो सकते हैं और संख्या से बाहिर असंख्यात भी हो सकते हैं। संबद्ध अपने साथ संबद्ध - पुदुल द्रव्यरूप भी होते हैं और असंबद्ध - दूरस्थित पुद्गल - द्रव्यरूप भी होते हैं। तथा ये समानवर्णादिकों से भी युक्त होते हैं और असमानवर्णादिकों से भी युक्त होते हैं । 'विउव्वित्ता तओ पच्छा अपणो अहिच्छाई कज्जाई करेंति' इन रूपों की विकुर्वणा करके , અથવા દ્વીન્દ્રિય જીવના, અથવા ત્રંન્દ્રિય જીવના અથવા ચતુરિન્દ્રિય જીવના અથવા પંચેન્દ્રિય જીવતા રૂતુ નિર્માણ કરી શકે છે. જ્યારે તેઓ પોતાની વૈયિ શક્તિ દ્વારા અનેક રૂપનુ નિર્માણ કરે છે, ત્યારે તેઓ અનેક એકેન્દ્રિય જીવાની, અથવા દ્વીન્દ્રિય જીવાની, અથવા ત્રીન્દ્રિય જીવાની અથવા ચતુરિન્દ્રિય જીવાની અથવા પૉંચેન્દ્રિય જીવાની પણ વિષુવČણા કરી શકે છે. તે विधुवित ३ " संखेज्जाणि वा, असंखेज्जाणि वा, संबद्धाणि वा, असंबद्धाणि वा, खरिसाणि वा, असरिसाणि वा विउव्वंति " सख्यात पशु होध शडे छे, અસખ્યાત પણ હાઈ શકે છે, સખદ્ધ-પેાતાની સાથે સંબદ્ધ-પુદ્ગલ દ્રવ્ય રૂપ પણ હાઇ શકે છે, અસંખદ્ધ-દૂર સ્થિત પુદ્ગલ દ્રવ્ય રૂપ પણ હાઇ શકે છે, તથા તેઓ સમાન વર્ણાદિથી યુક્ત પણ હોઈ શકે છે અને અસમાન વર્ષોંहिमोथी युक्त पशु डाई शडे छे. "विउन्वित्ता तओ पच्छा अप्पणी अहिच्कि याई कज्जाई करे 'ति " मा इयोनी विदुर्वाचा ऊर्जा माह तेथे ईच्छानुसार
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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