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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०७ सू० २ जीवोत्पत्तिनिरूपणम् २६९ हे गौतम! एवमेव-पूक्तिरीत्यैव ते जीवा अपि अस्य जीवस्य अरितया वैरिकादितया असकृत् , अनन्तकृत्वो वा उत्पन्नपूर्वाः सन्ति ।गौतमः पृच्छति-'अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं रायत्ताए, जुवरायत्ताए, जाव सत्यवाहत्ताए उपचन्नपुवे?' हे भदन्त ! अयं खलु जीवः सर्वजीवानां राजतया, युवराजतया, यावत्-सार्थवाहतया उपपन्नपूर्वः ? पूर्वमुत्पन्नो वर्तते ? भगवाह-'हंता गोयमा! असई अणंत खुत्तो, सन्यजीवाणं एवंचेव' हे गौतम! हन्त-सत्यम् एको जीवः सर्वजीवानाम राजत्वादिना असकृत्-अनेकवारम्, अनन्तकृत्व:-अनेकवारम् , उपपन्नपूर्व:पूर्वमुत्पन्नो वर्तते, एवं सर्वजीवा अपि खलु एवमेव पूर्वोक्तरीत्यैव हे गौतम! हां, सजीव इस एक जीव के पहिले शत्रु-वैरी. आदि रूप में अनेकवार अथवा अनन्तयार उत्पन्न हो चुके हैं। __ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अयं णं भंते ! जीवे सन्यजीवाणं रायत्साए, जुवरायत्ताए जाव सत्यवाहत्ताए उववन्नपुवे' हे भदन्त ! यह जीव समस्त जीर्वाका राजारूप से, यावत् सार्थवाहरूपसे पहिले उत्पन्न हो चुका है क्या? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, गोयमा! असई अणंतखुत्तो सधजीवाणं एवंचेव' हां, गौतम! यह एक जीव सब जीवों का राजा भी हो चुका है, युवराज भी हो चुका है यावत् सार्थवाह भी हो चुका है! इस प्रकार की परिस्थिति वाला यह एक ही बार नहीं हुआ है, किन्तु अनेकवार अथवा अनन्तबार हुआ है। इसी प्रकार का कथन सर्वजीवों के संबंध में भी जानना चाहिये। महावीर प्रसुन म-“ एवमेव" गौतम ! समस्त को पत्र આ જીવના શત્રુ, વૈરી આદિ રૂપે પહેલાં અનેક વાર અથવા અનંતવાર ઉત્પન્ન થઇ ચુક્યા છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं रायत्ताए, जुवरायत्ताए जाव सत्यवाहत्ताए ज्ववन्नपुब्वे ?" भगवन् ! 21 पशुपडai સમસ્ત જીના રાજા રૂપે, યુવરાજ રૂપે અને સાર્થવાહ પર્વતના રૂપે પણ ઉત્પન્ન થઈ ચુકયે છે? ___ महावीर प्रभुना उत्त२-" हता, गोयमा! असई पणत खुत्तो सजीवाणं एवं चेत्र" डा, गौतम! 241 ~ भने वा२ मन मनतवार, समस्त છના રાજા, યુવરાજ આદિ રૂપે પૂર્વે ઉત્પન્ન થઈ ચુકી છે. સમસ્ત જીવો પણ આ જીવના રાજા, યુવરાજ આદિ રૂપે પૂર્વે અનેક વાર અથવા અનતવાર ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યા છે.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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