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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०७ सू०२ जीवोत्पत्तिनिरूपणम् २६५ तया-द्वीन्द्रियतया किम् उत्पन्नपूर्व-पूर्वमुत्पन्नो वर्तते ? भगवानाह-हता, गोयमा । जाव अणंतखुतो ? सबजीवा वि णं एवंचेय' हे गौतम ! हन्त-सत्यम् यावत्-एको जीवः असंख्यातद्वीन्द्रियावासलक्षेषु एकैकस्मिन् द्वीन्द्रियावासे पृथिवीकायिकादिता असकृत्-वारं वारम्, अथवा, अनन्तकृत्व -अनन्तवारम् उत्पन्नपूर्वः-पूर्वमुत्पन्नो वर्तते, सर्वजीवा गपि खलु एस्मेव-पूर्वक्तिरीत्यैव, असं ल्यात द्वीन्द्रियावासलक्षेषु एकैकरिमन् द्वीन्द्रियावासे पृथिवीकायिकादितया असकृत्-अनेकवारम्, अथवा अनन्तकृत्य -अनन्तवारम् , उपपन्नपूर्वाः- पूर्वमुत्पन्नाः सन्ति, 'एवं जाव मणुस्सेसु, नवरं तेंदियएसु जाव चणस्सइकाइयत्ताए तेंदियत्ताए, चउरिदिएम चउरिदियत्ताए, पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु करूप से, वायुकायिकरूपसे, वनस्पतिकायिकरूप से, एचं हीन्द्रियरूप से क्या पहिले उत्पन्न हो चुका है ? इसके उन्तर में प्रभु कहते हैं-'हता, गोयमा ! जाव अणतखुत्तो, सधजीचा वि णं एवं चेच' हां, गौतम ! एक जीव असंख्यात लाख प्रमाण द्वीन्द्रियावासों में से एक एक द्वीन्द्रियावास में पृथिवीकायिकादिरूप से अनेकवार अथवा अनंतवार उत्पन्न हो चुका है। इसी प्रकार से सब जीव भी असंख्यात लाख द्वीन्द्रियाः वासों में से एक एक द्वीन्द्रियावास में पृथिवीकायिक आदि रूप से अनेकवार अथवा अनन्तबार उत्पन्न हो चुके हैं। ' एवं जाव मणुस्सेसु, नवरं तेइंदिएसु जाव वणस्सइकाइयत्ताए तेइंदियत्ताए, चउरिदिएप्सु चरिदियत्ताए, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु पंचिंदियतिरिक्खजोणिय. ताए, मणुस्लेसु मणुस्सत्ताए, सेसं जहा वेइंदियाणं' इसी प्रकार से કાયિક રૂપે, તેજસ્કાયિક રૂપે, વાયુકાયિક રૂપે, વનસ્પતિકાયિક રૂપે અને કીન્દ્રિય રૂપે ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યું છે? भडावीर प्रभुन। उत्तर-' हता, गोयमा ! जाव अणंत खुत्तो, सव्व जीवा विणं एवं चेव" , गौतम ! मे ७१, मन्यात ari द्वीन्द्रियावासीમાંના પ્રત્યેક દ્વિદ્િયાવાસમાં પૃથ્વીકાયિક આદિ રૂપે પૂર્વે અનેકવાર અથવા અનંતવાર ઉત્પન્ન થઈ ચુકયો છે એજ પ્રમાણે સમસ્ત જી પણ અસં. ખ્યાત લાખ દ્વિીન્દ્રિયાવાસમાના પ્રત્યેક હીન્દ્રિયાવાસમાં પૂર્વે અનેકવાર અથવા मनतवा२ स्पन्न यु४॥ छ. " एव जाव मणुम्सेसु, नवर तेइंदिएसु जाव वणस्सइकाइयत्तार, तेइंदियत्ताए, चउरिदिएसु चरिदियत्ताए, पचिंदियतिरिक्खजो णिएसु पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्ताए, मणुस्सेसु मणुस्सचाए, सेसं जहा वेइदियाणं" भ० ३४
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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